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केशवदत्त की कथा ।
और प्रतिदिन भक्तामरसे पवित्र स्तोत्रका पाठ करते रहना चाहिए । उसके प्रभावसे सब विघ्न-बाधाएँ देखते देखते नष्ट हो जाती हैं ।
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नात्यद्भुतं भुवनभूषण भूतनाथ भूतैर्गुणैर्भुवि भवन्तमभीष्टुवन्तः । तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किं वा भूत्याश्रितं य इह नात्मसमं करोति ॥ १० ॥ दृष्ट्वा भवन्तमनिमेषविलोकनीयं
नान्यत्र तोषमुपयाति जनस्य चक्षुः ।
पीत्वा पय: शशिकरद्युतिदुग्धसिन्धोः
क्षारं जलं जलनिधेरसितुं क इच्छेत् ॥ ११ ॥ हिन्दी - पद्यानुवाद |
आश्चर्य क्या भुवनरत्न, भले गुणोंसे; तेरी किये स्तुति बने तुझसे मनुष्य । क्या काम है जगतमें उन मालिकोंका, जो आत्म-तुल्य न करें निज आश्रितोंको ॥ अत्यन्त सुन्दर विभो, तुझको विलोक,
अन्यत्र आँख लगती नहि मानवोंकी । क्षीराब्धिका मधुर सुन्दर वारि पीके, पीना चहे जलधिका जल कौन खारा ॥
हे संसारके भूषण ! हे जीवोंके स्वामी ! इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं जो आपकी सत्यार्थ गुणों द्वारा स्तुति करनेवाले पुरुष संसारमें आप ही सरीखे हो जायँ ! उस मनुष्यके संसारमें उत्पन्न होनेसे लाभ ही क्या जो अपने आश्रितों को धन-वैभव से अपने समान न बनाले ?
नाथ! अनिमेष देखने योग्य आपके सुन्दर रूपको देख कर लोगों के नेत्र दूसरी ओर जाते ही नहीं - उन्हें आपके सिवा और देवी-देवता नहीं सुहाते । भला, चंद्रमाके सदृश क्षीरसागरका निर्मल पानी पीकर लवण समुद्रका खारा जल पीनेकी कौन इच्छा करेगा ?