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केशवदत्तकी कथा।
१७.
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न जाने क्यों सिंह चिल्ला कर भाग खड़ा हुआ और केशवकी जान बच गई। ___ वहाँसे बच कर वह आगे बढ़ा । रास्तेमें उसे एक ठग मिला। ठगने उससे कहा-यहाँ एक रसकूप है । तुम उसमें उतर कर इस तँबीको रससे भर लाओ। इस रसका यह माहात्म्य है कि उससे जो. चाहो सो मिलता है। केशव बोला-भाई! तुमने कहा सो तो ठीक, पर कुएमें उतरा कैसे जायगा ? उत्तरमें ठगने बड़ी नम्रतासे कहां-इसकी तुम कुछ चिन्ता न करो । मेरे पास एक मजबूत रस्सी है। उससे बाँध कर मैं तुम्हें उतार दूंगा और जब तुम ज्ञवीमें रस भरलोगे तब खींच लँगा। वह बेचारा लोभमें पड़ कर ठगके झाँसेमें आ गया । ठगने उसकी कमरसे रस्सी बाँध कर उसे कुएमें उतार दिया, और जब उसने ह्बीमें रस भर लिया तब धीरे धीरे वह उसे ऊपर खींचने लगा। केशव लगभग किनारे पर आया होगा कि ठगने उससे कहा-ठहरो, जल्दी मत करो । पहले तूंबी मुझे देदो जिससे रस ढुलने न पावे । फिर तुम निकल आना । केशवने उसका कपट न समझ रसकी तूंजी उसे देदी । तूंबी उस ठगके हाथमें आई कि वह रस्सी छोड़कर भाग गया। बेचारा केशव धड़ामसे कुएमें जा गिरा । भाम्यसे वह सीधा गिरा, इससे उसके चोट तो विशेष न आई, पर भीतरकी गरमीसे उसका दम • घुटने लगा। उसे वहाँ भक्तामरके पाठ करनेकी याद हो उठी । वह
बड़ी श्रद्धाके साथ भगवानकी आराधना करने लगा। उसके प्रभावसे देवीने आकर उसे किनारे लगा दिया। यहाँ भी उसकी जान बच गई। उसे वहाँ देवीकी कृपासे कुछ रत्न भी प्राप्त हुए। वहाँसे वह आगे बढ़ा । रास्तेमें उसे साहूकारोंका एक संघ मिला, जो व्यापारकी