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सुधनकी कथा।
किसी तरहकी चिन्ता न करो, धर्मके प्रसादसे सब अच्छा होगा। इतना कह कर उसने उनका सब विघ्न दूर कर दिया और उसके बदले कापालिककी शक्ति आजमानेके लिए उसके जितने भक्त थे, उनके घरोंको धूल और पत्थरोंसे पूर दिये । बातकी बातमें यह खबर कापालिकके पास पहुँची । उसने बहुत चेष्टायें कीं, पर किसी तरह वह अपने भक्तोंका विघ्न दूर नहीं कर सका । आखिर लज्जित होकर वह देवीके पांवोंमें पड़ा और अपने अपराधकी देवीसे क्षमा करा कर उसने जैनधर्म स्वीकार किया। ___ जिनभगवानकी स्तुतिका इस प्रकार अचिन्त्य प्रभाव देख कर बहुतसे मिथ्यादृष्टियोंने-जिनधर्मके द्वेषियोंने भी मिथ्यात्व छोड़ कर पवित्र जिनधर्म स्वीकार किया । जैनधर्मकी बड़ी प्रभावना हुई । जो धर्म संसारके जीवमात्रका उपकारक है उससे क्या नहीं हो सकता है।
मत्वेति नाथ ! तव संस्तवनं मयेद
मारभ्यते तनुधियापि तव प्रभावात् । चेतो हरिष्यति सतां नलिनीदलेषु
मुक्ताफलद्युतिमुपैति ननूदबिन्दुः॥८॥ आस्तां तव स्तवनमस्तसमस्तदोष
त्वत्संकथापि जगतां दुरितानि हन्ति । दूरे सहस्रकिरणः कुरुते प्रभैव ___ पद्माकरेषु जलजानि विकाशभाञ्जि ॥९॥ _ हिन्दी-पद्यानुवाद । यों मान की स्तुति शुरू मुझ अल्प धीने; तेरे प्रभाववश नाथ! वही हरेगी