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भक्तामर-कथा।
___ एक दिन पटनेमें धूली और घासी नामके दो पाखण्डी . कापालिक
आए। उन्होंने अपनी नीच विद्याके बलसे नित्य-नये आश्चर्य दिखा दिखा कर सारे शहरको अपना भक्त बना लिया । शहरके छोटे मोटे सभी लोग उनकी पूजा करनेके लिए तीनों समय आने लगे। - एक दिन कापालिकने अपने एक शिष्यसे पूछा, शहरके सभी लोग यहाँ आते हैं या कोई नहीं भी आता है। शिष्यने उत्तर दिया प्रभो ! आपकी भक्ति करनेके लिए आते तो प्रायः सभी हैं, पर हाँ केवल दो जने नहीं आते देख पड़ते। एक तो सुधन और दूसरा भीमरान । वे दोनों बड़े अभिमानी हैं। उनकी जैनधर्म. पर बड़ी श्रद्धा है । इसलिए वे उसके सामने सभी धर्मोंको तुच्छ समझते हैं । सुन कर कापालिक क्रोधके मारे लाल हो उठा । उसने कहा, अच्छा देखूगा उन लोगोंका धर्माभिमान ! सब तो आकर मेरी भक्ति-पूजा करते हैं और उन्हें इतना गर्व जो मेरी विद्याकी भी वे कद्र नहीं करते ! ___ रात हुई। सारा शहर निद्रादेवीकी गोदमें सुख भोग रहा था। उस समय कापालिकने अपने वीरोंको-पिशाचोंको बुला कर आज्ञा की कि जाकर सुधन और भीमराजके महलोंको पत्थर और धूलसे ऐसा पुर दो कि उनमें तिलमात्र भी खाली जगह न बच पावे, जिससे वे लोग बाहर न निकल कर भीतरके भीतर ही रह जायें और अपने कियेका फल भोगें । पिशाचोंने वैसा ही किया। उनके महलोंको धूल
और पत्थरोंसे खूब पर दिया । ___ आकस्मिक अपने पर संकट आया देख कर सुधन और भीमराजको बड़ी चिंता हुई। परंतु उन्होंने इस विश्वास पर, कि धर्म दुःखमें सहायी होता है, कुछ विशेष कष्ट न मान कर भक्तामरका स्मरण करना शुरू कर दिया। उनकी अचल श्रद्धा देख कर चक्रेश्वरीने आकर उनसे कहा-तुम