________________
१२
भक्तामर-कथा।
सच है-पुण्यके प्रभावसे क्या नहीं होता। इसलिए जीव-मात्रको अपनी प्रवृत्ति अच्छे कामोंकी ओर अधिक लगानी चाहिए ।
सोऽहं तथापि तव भक्तिवशान्मुनीश ! __कर्तुं स्तवं विगतशक्तिरपि प्रवृत्तः । प्रीत्यात्मवीर्यमविचार्य मृगो मृगेन्द्र
मन्द्र नाभ्यति किं निजशिशोः परिपालनार्थम् ॥५॥ अल्पश्रुतं श्रुतवतां परिहासधाम
त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरुते बलान्माम् । यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति
तच्चारुचूतकलिकानिकरैकहेतु ॥६॥ त्वत्संस्तवेन भवसन्ततिसन्निबद्धं
पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्तलोकमलिनीलमशेषमाशु सूर्यांशुभिन्नमिव शार्वरमन्धकारम् ॥ ७॥
___हिन्दी-पद्यानुवाद । हूँ शक्तिहीन फिर भी करने लगा हूँ,
तेरी, प्रभो! स्तुति, हुआ वश भक्तिके मैं। क्या मोहके वश हुआ शिशुको बचाने,
है सामना न करता मृग सिंहका भी। हूँ अल्पबुद्धि, बुधमानवकी हँसीका ।
हूँ पात्र, भक्ति तव है मुझको बुलाती। जो बोलता मधुर कोकिल है मधूमें, है हेतु आम्रकलिका बस एक उस्का ॥