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सुमतिकी कथा।
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और उनके साधनेकी विधि बतलाए देता हूँ, उन्हें तू प्रतिदिन जपा करना । इससे तेरी दरिद्रता नष्ट हो जायगी। यह कह कर मुनिराजने उसे भक्तामरके दो श्लोक और उनके मंत्र तथा साधनेकी विधि बतला दी । सुमति उन श्लोकोंको याद करके मुनिराजको वन्दना कर वहाँसे चला आया। __ दूसरे दिन मंत्र साधनेकी इच्छासे सुमतिने कुछ महाजनोंके लड़कोंके साथ नाव द्वारा समुद्र-यात्रा की । भाग्यसे हवाकी विपरीत गति होनेके कारण उनकी नाव इधर उधर डुलने लगी। सबको अपने जीनेका सन्देह होने लगा । वे लोग घबरा कर अपने अपने देवकी आराधना करने लगे; परन्तु उससे उन्हें कुछ लाभ नहीं हुआ । आखिर नाव टूट-फूट कर डूब गई। भाग्यके विपरीत होने पर कभी सुख नहीं होता। इस महा संकटमें सुमतिको मुनिराजके सिखाये श्लोकोंकी याद आ गई। उसने उसी समय एक चित्त होकर उनका ध्यान किया। उसके प्रभावसे चक्रेश्वरीने आकर उसकी सहायता की । वह हाथोंसे तैर कर समुद्रके किनारे पर आ पहुँचा। देवी उसकी दृढ़ भक्ति देख कर बहुत संतुष्ट हुई । उसने उसे बहमूल्य रत्न प्रदान किये। जिनभगवान्के गुण- गानसे दुस्तर संसाररूपी समुद्र भी जब तैर लिया जाता है, तब उसके सामने तुच्छ समुद्रका तैर लेना कोई आश्चर्यकी बात नहीं।
इसके बाद सुमति सकुशल अपने घर आ पहुँचा । देवीने उसे और भी खूब धन देकर कहा-"आपत्तिके समय मुझे याद करते रहना ।" इतना कह कर वह चली गई। ___ भगवानकी स्तुतिके प्रभावसे सुमति खूब धनवान् हो गया। वह सब साहूकारोंमें प्रधान गिना जाने लगा। उसका राजसम्मान भी खब होने लगा । दानियोंमें सबसे पहले उसका नाम लिया जाने लगा।