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________________ भक्तामर-कथा परीक्षा करना चाहते हैं, तो कृपाकर मुझे तीन दिनकी अवधि दीजिए। हेमदत्तके कहे अनुसार राजाने तीसरे दिन उन्हें खूब मजबूत बाँधकर एक बहुत ही गहरे कुएमें डलवा दिया और निगरानी रखनेके लिए अपने नौकरोंको बैठाकर उन्हें सख्त ताकीद कर दी कि हेमदत्त निकल न जाय । __कुएमें बैठे रहकर हेमदत्तने बड़ी भक्ति और श्रद्धाके साथ भक्तामरके दो काव्योंका स्मरण किया। उसके प्रभावसे चक्रेश्वरी देवी प्रगट हुई। उसने हेमदत्तके शरीरके सब बंधन खोल करके उसे खूब गहनोंसे सजाकर बहुत सुन्दर बना दिया। कुएका पानी भी देवीकी कृपासे घुटने प्रमाण हो गया। जिनमगवानके नाम-स्मरणसे जब संसारका कठिन बंधन भी क्षणमात्रमें नष्ट हो जाता है तब उसके सामने ऐसे तुच्छ बन्धनोंकी तो गिनती ही क्या है। ___ इसके बाद देवीने हेमदत्तसे कहा-महाशय, मैं अब राजाको जरा तकलीफ पहुँचाती हूँ। सो तुम जब भक्तामरके दो श्लोकों द्वारा जल मंत्रकर उसे राजा पर छींटोगे तब मैं उन्हें उससे मुक्त कर दूंगी। यह कहकर देवी राजाके पास गई और राजाको सहसा बीमार करके वह लोगोंसे बोली-" हेमदत्त सेठ यहाँ आकर अपना मंत्रा हुआ जल राजा पर छीटे तो बहुत शीघ्र आराम हो सकता है। इसके सिवा और उपाय करना व्यर्थ है।" देवीके कहे अनुसार हेमदत्त बुलवाये गये। उन्होंने अपना मंत्रा हुआ जल राजा पर छींटा । उसके बाद उन्हें देखते देखते आराम हो गया। यह देख राजा उठकर देवीके पाँवोंमें गिर पड़े और बोले-माँ ! क्षमा करो, न जानकर ही मैंने आपका अपराध किया है। उत्तम पुरुष अज्ञानी और बालकों पर सदा क्षमा ही किया करते हैं ।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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