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हेमदत्तकी कथा।
हेमदत्तकी कथा। उक्त श्लोकोंके मंत्रोंकी आराधनासे हेमदत्त सेठको जो फल प्राप्त हुआ उसकी कथा लिखी जाती है। उसे सुनिए__एक दिन राजा भोज रान-समामें बैठे हुए थे। इतनेमें कुछ ब्राह्मणोंने आकर उनसे प्रार्थना की कि महाराज ! सुना जाता है-भक्तामरका बड़ा माहात्म्य है, और उसे बुद्धिमान् मानतुंगने पहले बतलाया भी था। पर हमें इससे यह विश्वास नहीं होता कि वह भक्तामरका माहात्म्य था। क्योंकि मानतुंग मंत्र-शास्त्र जानते थे, इस लिए संभव है, उन्होंने मंत्रकी करामात दिखला कर उसे स्तोत्रकी कह दिया हो, अथवा किसी देवताकी आराधना या किसी औषधि द्वारा ऐसा कर दिखाया हो । क्योंकि यहाँ बहुतसे मंत्र-तंत्रके जाननेवाले नंगे साधु इधर उधर घूमा ही करते हैं । इसलिए हम तब भक्तामरका सच्चा माहात्म्य समझें जब कि कोई दूसरा भी इसके द्वारा वैसा ही चमत्कार बतलावे । ब्राह्मणों के वचन सुनकर राजाने सभाकी ओर आँख उठाकर कहा-क्या हमारी नगरीमें भी कोई भक्तामरस्तोत्रका अच्छा जानकार है। उनमेंसे एक मनुष्य बोला कि महाराज! हेमदत्त सेठ भक्तामरके अच्छे जाननेवाले हैं। वे बड़े भद्र, धर्मात्मा और सदाचारी श्रावक हैं। राजाने अपने नौकरोंको भेजकर हेमदत्तको बुलवाया। हेमदत्त राजाज्ञा पाते ही विलम्ब न कर उसी समय राजसभामें आ-उपस्थित हुए। राजाने उनका उचित सन्मान कर पूछा-क्या आप भक्तामरको, जो कि श्रीमानतुंग महाराजका बनाया हुआ है, जानते हैं । सुना है कि उसकी आपको सिद्धि भी प्राप्त है । कहिए यह बात ठीक है ? उत्तरमें हेमदत्तने कहा-महाराज ! थोड़ा कुछ उसके विषयसे मैं परिचित हूँ। आप यदि