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भक्तामर - कथा ।
विधि—उक्त ऋद्धिमंत्र द्वारा १०८ बार पानी मंत्रकर पिलानेसे और यंत्र पास रखनेसे दुख्नती हुई आँखें अच्छी होती हैं तथा बिच्छूका विष उतर जाता है । ३०-
ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणाणं ।
मंत्र - ॐ नमो अद्रे मट्ठे क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तंभय स्तंभय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । फल - उक्त ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे शत्रुका स्तंभन होता है; और राह में चोर और सिंहका भय नहीं रहता ।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणपरक्कमाणं ।
मंत्र — ॐ उवसग्गहरं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं विसहरविसणिर्णासिणं मंगलकल्लाण आवास ॐ ह्रीं नमः स्वाहा ।
फल – इस मंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे राजमान्यता होती है; तथा दाद और खाज मिट जाती है ।
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ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोर गुणवंभचारिणं ।
मंत्र — ॐ नमो हां हीं हूं हौं हः सर्वदोषनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा ।
विधि - उक्त ऋद्धि मंत्रद्वारा अविवाहित बालिकाका काता हुआ सूत १०८ -बार मंत्रकर उसे गलेमें बांधने और यंत्र पास रखनेसे संग्रहणी आदि पेटकी सब पीड़ाएँ नष्ट होती हैं ।
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ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वोसहिपत्ताणं ।
मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ध्यानसिद्धिपरमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा ।
विधि - उक्त ऋद्धिमंत्र द्वारा अविवाहित बालिकाके काते हुए सूतके २१ बार मंत्रकर बनाए हुए गंडेको बाँधनेसे, झाड़ा देनेसे तथा यंत्रके रखनेसे एकांतरा, तिजारी, ताप आदि सब रोग नष्ट होते हैं । इस विधि में धूप और घृत मिले हुए
गुरगुलकी धूप होना चाहिए ।
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ऋद्धि - ॐ हीं अर्ह णमो खल्लो सहि पत्ताणं ।