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________________ १३२ भक्तामर - कथा । विधि—उक्त ऋद्धिमंत्र द्वारा १०८ बार पानी मंत्रकर पिलानेसे और यंत्र पास रखनेसे दुख्नती हुई आँखें अच्छी होती हैं तथा बिच्छूका विष उतर जाता है । ३०- ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणाणं । मंत्र - ॐ नमो अद्रे मट्ठे क्षुद्रविघट्टे क्षुद्रान् स्तंभय स्तंभय रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । फल - उक्त ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे शत्रुका स्तंभन होता है; और राह में चोर और सिंहका भय नहीं रहता । ३१ ---- ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणपरक्कमाणं । मंत्र — ॐ उवसग्गहरं पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं विसहरविसणिर्णासिणं मंगलकल्लाण आवास ॐ ह्रीं नमः स्वाहा । फल – इस मंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे राजमान्यता होती है; तथा दाद और खाज मिट जाती है । ३२ ऋद्धि - ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोर गुणवंभचारिणं । मंत्र — ॐ नमो हां हीं हूं हौं हः सर्वदोषनिवारणं कुरु कुरु स्वाहा । विधि - उक्त ऋद्धि मंत्रद्वारा अविवाहित बालिकाका काता हुआ सूत १०८ -बार मंत्रकर उसे गलेमें बांधने और यंत्र पास रखनेसे संग्रहणी आदि पेटकी सब पीड़ाएँ नष्ट होती हैं । ३३ ऋद्धि-ॐ ह्रीं अर्ह णमो सव्वोसहिपत्ताणं । मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ब्लूं ध्यानसिद्धिपरमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा । विधि - उक्त ऋद्धिमंत्र द्वारा अविवाहित बालिकाके काते हुए सूतके २१ बार मंत्रकर बनाए हुए गंडेको बाँधनेसे, झाड़ा देनेसे तथा यंत्रके रखनेसे एकांतरा, तिजारी, ताप आदि सब रोग नष्ट होते हैं । इस विधि में धूप और घृत मिले हुए गुरगुलकी धूप होना चाहिए । ३४ ऋद्धि - ॐ हीं अर्ह णमो खल्लो सहि पत्ताणं ।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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