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________________ . ऋद्धि, मंत्र और साधनविधि। १३१ ऋद्धि-ॐ ही अहं णमो उम्गतवाणं । मंत्र--ॐ हां ही हौं हा अ सि आ उ सा झां झौं स्वाहा । ॐ नमो भगवते जयविजयापराजिते सर्वसौभाग्यं सर्वसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-उक्त ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे धीज उतरती है, तथा आराधकपर अग्निका असर नहीं होता। ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो दित्ततवाणं । मंत्र-ॐ नमो ॐ हों श्रीं क्लीं हूं हूं परजनशान्तिव्यवहारे जयं कुरु कुरु स्वाहा। विधि-ऋद्धिमंत्र द्वारा १०८ बार तेल मंत्र कर सिरपर लगानेसे और यंत्र पास रखनेसे आधासीसी आदि सब सिरके रोग मिट जाते हैं। मंत्रे हुए तेलसे मालिश करने और मतरा हुआ जल पिलानेसे प्रसूताको संतान जल्दी हो जाती है। २७ ऋद्धि- ही अर्ह णमो तत्ततवाणं । .. मंत्र-ॐ नमो चक्रेश्वरी देवी चक्रधारिणी चक्रेणानुकूलं साधय साधय शत्रुनु, न्मूलयोन्मूलय स्वाहा। विधि-ऋद्धिमंत्रकी आराधना करने और यंत्र पास रखनेसे शत्रु आराधनमें कुछ हानि नहीं पहुंचा सकता । २१ दिनतक काली मालासे जाप करनेसे शत्रुका नाश होता है। नित्य १ बार अलोना भोजन करना चाहिए और कालीमिर्चका होम करना चाहिए। २८- . __ ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो महातवाणं । मंत्र-ॐ नमो भगवते जयविजय मुंभय मुंभय मोहय मोहय सर्वसिद्धिसम्पत्तिसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।' विधि-उक्त ऋद्धिमंत्रकी आराधनासे और यंत्रके पास रखनेसे सब काम सिद्ध होते हैं, व्यापारमें लाभ होता है, सुख प्राप्त होता है, विजय होती है। २९ ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो घोरतवाणं । मंत्र-ॐ णमो णमिऊण पासं विसहरफुलिंगमंतो विसहरनामरकारमंतो सर्वसिद्धिमीहे इह समरंताणमण्णे जागई कप्पदुमचं सर्वसिद्धिः ॐ नमः स्वाहा।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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