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________________ ऋद्धि, मंत्र और साधनविधि । Porno ऋद्धि--ॐ हीं अहं णमो अरिहंताणं णमोजिणाणं हां ही हूं हौं हः आ सि आ उ सा अप्रतिचक्रे फट् विचक्राय झौं झौं स्वाहा । मंत्र-ॐ हां ही हूं श्रीं क्लीं ब्लू क्रौं ॐ हीं नमः स्वाहा। विधि-पवित्र भावोंके साथ प्रतिदिन १०८ बार ऋद्धिमंत्रको जपने और यंत्रके पास रखनसे सब प्रकारके उपद्रव नष्ट होते हैं । ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो ओहिजिणाणं । मंत्र-ॐ हीं श्रीं क्लीं ब्लू नमः । विधि-काला वस्त्र पहरे, काली माला लिए, काले आसनपर बैठे, पूर्व दिशा की ओर मुख किए, दंडासन बैठकर २१ दिनतक प्रतिदिन १०८ बार अथवा ७ दिनतक प्रतिदिन १००० ऋद्धिमंत्रका जाप करनेसे शत्रु नष्ट होते हैं, सिर दुखना बन्द होता है और यंत्र पास रखनेसे नजर बन्द होती है । मंत्र साधने तक नमकसे. होम करना चाहिए और दिनमें एक बार भोजन करना चाहिए। ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो परमोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ हीं श्रीं क्लीं सिद्धेभ्यो बुद्धेभ्यः सर्वसिद्धिदायकेभ्यो नमः स्वाहा । विधि–उक्त ऋद्धिमंत्रको कमलगट्टेकी माला द्वारा ७ दिनतक प्रतिदिन त्रिकाल. १०८ बार जपना चाहिए। होमके लिए दशांगधूप हो और चढ़ानेको गुलाबके फूल हो । चुल्लूमें पानी मंत्रकर २१ दिन तक मुँहपर छींटनेसे सब प्रसन्न होते हैं और यंत्र पास रखनेसे शत्रुकी नजर बन्द होती है। ऋद्धि-ॐ हीं अहं णमो सम्बोहिजिणाणं । मंत्र-ॐ हीं श्रीं क्लीं जलयात्राजलदेवताभ्यो नमः स्वाहा । विधि-उक्त ऋद्धिमंत्रका सफेद मालासे ७ दिनतक प्रतिदिन १००० बार
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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