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________________ ११६ नाथ ! जो बुद्धिमान् आपके इस स्तोत्रका निरन्तर पाठ किया करते हैं, वे उन्मत्त हाथी, सिंह, दावानल, सर्प, युद्ध, समुद्र, जलोदर और बन्धन आदि द्वारा होनेवाले भयसे शीघ्र ही मुक्त हो जाते हैं- भय ऐसे लोगों से डरे हुएकी भाँति नष्ट हो जाता है । जिनेन्द्र ! आपके पवित्र गुणोंसे अथवा प्रसाद, माधुर्य आदि गुणोंसे ( मालाके. पक्षमें दूसरा अर्थ —सूतके डोरेसे ) युक्त और सुन्दर सुन्दर अक्षररूपी विचित्र फूलोंसे ( दूसरा अर्थ - अनेक प्रकारके मनोहर और सुगन्धित फूलोंसे ) भक्ति-पूर्वक मेरे द्वारा रची हुई ( दूसरा अर्थ ——— गूँथी हुई ) इस स्तोत्ररूपी मालाको ( दूसरा अर्थफूलोंकी मालाको ) संसारमें जो पुरुष अपने कंठमें धारण करते हैं, उन उन्नत हृदयवाले लोगोंको या इस स्तोत्रके बनानेवाले मुझ मानतुंग मुनिको राज- वैभव या स्वर्गमोक्ष-रूपी लक्ष्मी अवश होकर प्राप्त होती है । अर्थात् आपके इस पवित्र स्तोत्रका प्रतिदिन श्रद्धा-भक्तिके साथ पाठ करनेवाले लोगोंको धन-सम्पत्ति, राज्य- वैभव, स्वर्ग आदि विभूति बिना किसी कष्टके प्राप्त होती है । भक्तामर कथा । ग्रन्थकारका वक्तव्य और प्रशस्ति । । भक्तामर स्तोत्रका बड़ा भारी माहात्म्य है । उसे बृहस्पति और ब्रह्मा भी लिखने अथवा कहनेको समर्थ नहीं, तब मुझसा अल्पज्ञ कैसे लिख सकता है । इसलिए अल्पज्ञता वश मेरे लिखनेमें जो भूलें हुई. हैं उन्हें बुद्धिमान् और विद्वान् लोग सुधार कर मुझे क्षमा करें इस स्तोत्र के प्रत्येक श्लोकमें मंत्रोंके बीजाक्षर बुद्धिमानी और पाण्डित्य के साथ निवेशित किए गए हैं । इसलिए सर्व-साधारण की इसमें गति होना बहुत ही कठिन, बल्कि असंभव है । इसलिए इस विषयको गुरुओं द्वारा ही समझना चाहिए । कारण जैन लोग गुरुओंके द्वारा कठिनसे कठिन कामको भी बहुत शीघ्र सिद्ध कर डालते हैं । सकलचंद्र गुरुके दो शिष्य हैं । एक तो जैस और दूसरा मैं ( रायमल्ल ) । सो गुरुभाई जैसके प्रेम-वश हो मैंने यह श्रेष्ठ और संक्षिप्त भक्तामर कथा लिखी है ।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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