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________________ प्रशस्ति । इस स्तोत्रके एक एक मंत्रको सिद्ध करके भी जब बहुतोंने फल प्राप्त किया, तब जो लोग सारे स्तोत्रका पाठ करते हैं, उसके मंत्रोंका साधन करते हैं, उनके लाभका तो पूछना ही क्या ? मंत्रोंके प्रभावसे जो राज्य, धन, ऐश्वर्य, पुत्र, निरोगता आदि प्राप्त होते हैं वह तो स्तोत्रका आनुषंगिक फल है। जिस भाँति गेहूँकी खेती करनेवालेको गेहके साथ साथ भुसी आनुषंगिक-बिना किसी कष्टके मिल जाती है, उसी भाँति स्तोत्रका मुख्य फल सर्वज्ञ-पदकी प्राप्ति होकर मोक्षलाभ है और राज्य-वैभव, धन-सम्पत्ति आदिका प्राप्त होना उसका आनुषंगिक ___ श्रीहूँबड़-वंश-तिलक मह्य नामके एक अच्छे धनी हो गए हैं। उनकी विदुषी भार्याका नाम चम्पाबाई था। वे बड़ी धर्मात्मा और श्रावकव्रतकी धारक थीं। उनके जिन-चरण-कमल-भ्रमर पुत्र रायमल्लने (मैंने) वादिचन्द्र मुनिकी कृपा लाभ कर यह छोटी, सरल और सुबोध भक्तामर-कथा लिखी है। __ग्रीवापुरमें एक मही नामकी नदी है। उसके किनारे पर चन्द्रप्रभ भगवानका बहुत विशाल मन्दिर है। उसमें कर्मसी नामके एक ब्रह्मचारी रहते हैं। उन्होंने मुझे भक्तामर-कथा लिख देनेको कहा। उन्हींके अनुरोधसे मैंने यह कथा लिखी है। इस कथाके पूर्ण करनेका संवत् १६६७ और दिन आषाढ़ सुदी ५ बुधवार है। मेरी इच्छा है कि भव्यजन इस कथासारके द्वारा लाभ उठा कर अपना कल्याण करें और मेरे इस छोटेसे परिश्रमको सफल करें। भक्तामरकथा समाप्त।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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