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भक्तामर-कथा।
राजहंसने उनसे पूछा कि प्रभो ! इस रोगके मारे मैं बड़ा दुःखी हो रहा हूँ, इसलिए इसके नष्ट होनेका कोई उपाय बतलाइए। ____ मुनिने उसे भक्तामर स्तोत्र सिखा कर और साथ ही "उद्भूतभीषण जलोदरभारभुना" इस श्लोकका मंत्र बता कर उसकी साधन-विधि भी बतला दी। उनके कहे अनुसार तीनों काल उसका पाठ करते रहने के कारण धीरे धीरे राजहंसका सब रोग जाता रहा और वह भला-चङ्गा हो गया । दिग्विजयसे लौटे हुए नृपशेखरको जब पुत्रका हाल जान पड़ा तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने उसी समय पुत्रके ढूँढ़नेके लिए चारों ओर अपने कर्मचारियोंको भेजा। वे पता लगाते लगाते
राजहंसके पास पहुँच गए । इससे उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । उन्होंने पिताके दुःखका सब हाल राजकुमारसे कह सुनाया । अपने लिए पिताको दुखी सुन कर राजहंसको भी बहुत दुःख हुआ। वह वहाँसे फिर उसी समय रवाना होकर पिताके पास आ-पहुँचा । पुत्रके समागमसे नृपशेखरको अत्यन्त प्रसन्नता हुई। ___ इसके बाद राजहँसको राज्य देकर और जिनदीक्षा ग्रहण कर नृपशेखर कठोर तप करने लगे। - उधर मानगिरिको भी राजकुमारके स्वस्थ हो जानेकी घटनासे यह निश्चय हो गया कि कर्मवाद भी कमजोर नहीं है। इसके बाद उन्होंने जैनधर्म स्वीकार कर अपनी पुत्रीसे अपराधकी क्षमा कराई और उसे बड़े प्रेमसे गले लगाया।
जिस स्तोत्रके प्रभावसे जन्म-जरा-मरण आदि भयंकर रोग तक नष्ट हो जाते हैं, उससे साधारण शारीरिक रोगोंका नष्ट होना कोई आश्चर्यकी बात नहीं है।