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________________ रणधीरकी कथा। ११३ धर्मका प्रभाव अक्षुण्ण है । उससे सब कुछ हो सकता है। इसलिए सुखकी इच्छा रखनेवालोंको निरन्तर धर्मका सेवन करते रहना चाहिए। आपादकण्ठमुरुशृङ्खलवेष्टिताङ्गा गाढं बृहन्निगडकोटिनिघृष्टजवाः। त्वन्नाममन्त्रमनिशं मनुजाः स्मरन्तः सद्यः स्वयं विगतबन्धभया भवन्ति ॥४६॥ हिन्दी-पद्यानुवाद। सारा शरीर जकड़ा दृढ़ साँकलोंसे, बेड़ी पड़ें छिल गई जिनकी सुजाँचें, त्वन्नाम-मंत्र जपते जपते उन्होंके, जल्दी स्वयं झड़ पड़ें सब बन्ध बेड़ी ॥ नाथ ! जिनका पाँवोंसे लेकर कंठ पर्यन्त सारा शरीर बड़ी बड़ी लोहेकी साँकलोंसे खूब मजबूत जकड़ा हुआ है, और कठोर बेड़ियोंसे जिनकी जाँघे घिस गई हैं, वे लोग भी आपके नामरूपी पवित्र मंत्रका निरन्तर स्मरण कर बहुत शीघ्र ऐसे बन्धनके भयसे निवृत्त हो जाते हैं। रणधीरकी कथा । इस श्लोककी आराधना द्वारा मनुष्य लोहेकी साँकल और बेड़ियोंके कठिन बन्धनसे छुटकारा पा जाते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है:___ भारतवर्ष में अजमेर प्रसिद्ध शहर है । जिस समयकी यह कथा है उस समय उसकी शोभा बहुत. चढी-बढ़ी थी। उसका ऊँचा प्रकार लंकाके प्रकारको लज्जित करता था । उसके गगन-चुम्बि महलोंकी श्रेणियाँ स्वर्गको नीचा दिखाती थीं। इसके राजाका नाम नरपाल था। उनके एक पुत्र था। उसका नाम रणधीर था। वह बुद्धिमान तो था ही, पर इसके साथ ही प्रचण्ड वीर भी था । शत्रु तो उसका नाम सुनते ही काँप उठते थे। भ. ८ ।पा।
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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