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कलावतीकी कथा।
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कार्योंका कर्ता न माना जाय तो यह भी संभव नहीं कि शरीरधारी एक साथ अनेक कार्योंको कर सके । ___ कदाचित् कहो कि वह अशरीरी होकर ही सब संसारका कर्ता है। सो यह भी केवल भ्रममात्र है। क्योंकि शरीरके बिना कोई मूर्तिक कार्य कभी नहीं बन सकते । जिस भाँति आकाशसे घट ।
हाँ एक बात और मैं पूछती हूँ कि ईश्वर जब संसारको बनाता है तब वह किसीकी प्रतिमूर्ति देख कर बनाता है या बिना देखे ही ? यदि देख कर बनाता है तब तो संसार अनादि ही ठहरेगा। क्योंकि जब जब वह उसे बनायगा तब तब उसकी प्रतिमूर्तिको देख कर ही बनायगा। और यदि बिना देखे ही बनाता है तो आकाशके फूल और गधेके सींग भी वह क्यों नहीं बना देता ?
पिताजी ! इन सब बातोंसे जान पड़ता है कि न तो ईश्वर संसारका कती है और न मनुष्य ही किसीको सुख-दुःख पहुँचा सकता है। इस प्रकार बातों ही बातोंमें कलावतीने अपने पिताकी बातोंका जबाब देकर उन्हें निरुत्तर कर दिया । ___ मानगिरिको पुत्रीकी इस धृष्टतासे बहुत खेद हुआ । उन्हें यह भी ज्ञात हो गया कि वह मेरे कहनेको नहीं मानेगी। तब उन्होंने उसके अभिमानको नष्ट करने और उसके कर्मवादकी परीक्षा करनेको उज्जयिनीके महारोगी राजकुमार राजहंसके साथ, जो अभी हस्तिनापुरमें आया है, कलावतीका ब्याह कर दिया । ये नव दम्पति एक वृक्षकी छायामें बैठे बैठे अपने भविष्य-जीवनकी चिन्ता कर रहे थे कि इसी समय एक मुनि इधर आ गये । वे बड़े ज्ञानी और तपस्वी थे । नव दम्पतिने भक्ति-भावसे उन्हें नमस्कार कर पवित्र धर्मोपदेश सुना । अन्तमें