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________________ भक्तामर-कथा। ऋषियोंका यह पवित्र उपदेश बड़े ही महत्त्वका है कि "चरतु सुखार्थी सदा धर्म" अर्थात् सुख चाहनेवालोंको निरन्तर धर्मका पालन करना चाहिए । यह धर्मका ही प्रभाव था जो अपने आप गुणवर्माको राज्यकी प्राप्ति हो गई। अम्भोनिधौ क्षुभितभीषणनकचक्र पाठीनपीठभयदोल्वणवाडवानौ । रङ्गत्तरङ्गशिखरस्थितयानपात्रास्वासं विहाय भवतः स्मरणाद्वजन्ति ॥४४॥ हिन्दी-पद्यानुवाद । हैं काल, नृत्य करते मकरादि जन्तु, त्यों वाड़वाग्नि अति भीषण सिन्धुमें है, तृफानमें पड़ गए जिनके जहाज,. वे भी प्रभो ! स्मरणसे तव पार होते॥ नाथ ! जिसमें भयंकर पाठीन, पीठ आदि मगरमच्छ क्षुभित हो रहे हैं-मुहँ फाड़े हुए इधर उधर दौड़ रहे हैं, और विकराल वाड़वाग्नि प्रचण्डता धारण किए हुए है, उस समुद्र में भी यात्री लोग, जिनके कि जहाज समुद्रकी अत्यन्त ऊँची उछलती हुई तरंगों द्वारा ईंवाडोल हो उठते हैं, आपका स्मरण कर निर्भयताके साथ अपनी यात्रा पूरी करते हैं। महेभ सेठकी कथा । इस पद्यके मंत्रकी आराधनासे समुद्रयात्रा निर्विघ्न पूरी हो जाती है-मगरमच्छादि जल-जन्तुओंका कुछ भय नहीं रहता । इसकी कथा इस प्रकार है: तामली नामका एक बहुत रमणीय नगर है। उसका तामली नाम इसलिए हुआ कि उसमें तमाल-ताड़के झाड़ बहुत थे। उसमें महेभ नामका एक सेठ रहता था। उसने अपने विद्वान् गुरु चंद्रकीर्ति
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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