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दृढव्रताकी कथा।
अपने स्वामीके पास आई । वास्तवमें सर्पको फूलोंकी मालाके रूपमें देख कर उन दोनों मायावियोंके आश्चर्यका कुछ ठिकाना न रहा । कर्मणने अपना भाव छिपा कर कहा-प्रिये ! कहो तो कितनी सुन्दर माला है ! अच्छा इसे तुम पहन कर देखो तो यह तुम्हें कैसी शोभा देती है ! दृढव्रताने अपनी हँसीको दबा कर मालाको पहन लिया । इसके बाद अपने गलेमेंसे उसे निकाल कर वह अपने भोले स्वभावको लिए हुए कर्मणसे बोली-जीवन-सर्वस्व ! आप भी तो इसे पहन देखिए। आपके गोरे गलेमें तो यह मुझसे भी कहीं अधिक शोभा देगी। यह कह कर दृढव्रता कर्मणके गलेमें उस मालाको डालनेहीवाली थी कि एक स्वर्गीय सुन्दरीने अचानक दृढव्रताका हाथ पकड़ कर कहापापियो! इस बेचारी सुशीला और सरल-हृदया धर्मनिष्ठ बालिका पर तुम लोग क्यों अत्याचार करते हो ? तुम बड़े ही दुर्जन हो ! अपना स्वभाव कैसे छोड़ोगे ? पर याद रक्खो तुम्हारा सर्पका मँगाना और उसके द्वारा इसकी जान लेना आदि जितना कूट-कपट है, वह किसीसे छुपा हुआ नहीं है। तुम इसे कितनी ही तकलीफ पहुँचाओ; परंतु इसके पास एक ऐसी अमोल वस्तु है, जिससे इसकी कुछ हानि नहीं होगी; बल्कि तुम्हें ही अधिकाधिक कष्ट उठाना पड़ेगा। मैं इस समय तुम पर इस लिए दया करती हूँ कि इस बेचारी निर्दोष बालिकाकी जिन्दगी खराब न हो । अतएव तुम यदि अपनी और अपने सब कुटुम्बकी कुशल चाहते हो, तो इस सतीके पाँवोंमें पड़ कर अपने अपराधकी क्षमा कराओ और प्रतिज्ञा करो कि अब कभी तुम इसके साथ दुराचारभन्याय नहीं करोगे । इतना कह कर देवी चल दी।
देवीके चले जाने पर वे दोनों दृढव्रताके पाँवों पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगे । सती दृढ़वता, उन्हें झटसे उठा कर स्वयं उनका