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________________ देवराजकी कथा। ९३ यह है कि जब जीवोंके पुण्यका उदय आता है तब उनके लिए कोई. बात कठिन नहीं रहती। ___ सोमराजको फिरसे राज्य मिल गया । उसने मुनिके उपदेशको याद कर धर्म पर अपनी श्रद्धाको अटल किया और खूब दान-धर्म द्वारा पुण्य उपार्जन किया। ___ यह सब धर्मका प्रभाव है। इसलिए जो सुखकी इच्छा करते हैं उन्हें सदा धर्मका पालन करना चाहिए । भिन्नेभकुम्भगलदुज्ज्वलशोणिताक्त मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः। बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि 'नाकामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते ॥ ३९ ॥ हिन्दी-पद्यानुवाद । नाना करीन्द्रदल-कुंभ विदारके की पृथ्वी सुरम्य जिसने गजमोतियोंसे; ऐसा मृगेन्द्र तक चोट करे न उस्पै तेरे पदाद्रि जिसका शुभ आसरा है। प्रभो ! जिसने हाथियोंके गण्डस्थलोंको विदीर्ण कर उनसे निकले हुए उज्ज्वल, पर खूनसे भरे हुए-मोतियोंसे पृथ्वीकी शोभाको बढ़ाया और जो अपने शिकार पर छलांग मारनेको तैयार खड़ा है वह सिंह भी, आपके चरण-पर्वताश्रित जनों परजो दुर्भाग्यसे सिंहके पाँवोंमें भी आ गिरे हों, आक्रमण नहीं कर सकता। देवराजकी कथा। इस पद्यकी जो भव्य पुरुष शुद्ध भावोंसे श्रद्धा-पूर्वक आराधना करते हैं उनका भयंकर सिंह भी कुछ नहीं कर पाता । कथा इस प्रकार है:
SR No.002454
Book TitleBhaktamar Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaylal Kasliwal
PublisherJain Sahitya Prasarak karyalay
Publication Year1930
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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