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पढ़ा, तब ऐसा अद्भुत चमत्कार हुआ कि श्री मानतुंग सूरि की हथकड़ी बेड़ी स्वयं टूट गईं और वे ४८ कोठों के बाहर आ गये । पहरेदार यह विचित्र चमत्कार देखकर दंग रह गये । उन्होंने इस घटना की सूचना राजा को दे दी ।
राजा ने अब बन्दीघर में आकर उस चमत्कार को स्वयं देखा तब उसे अपनी भूल प्रतीत हुई। उसने बहुत नम्रता के साथ श्री मानतुरंग सूरि के चरणों में नमस्कार करके अपने अपराध की क्षमा मांगी । आचार्य श्री ने उसे क्षमा कर दिया और उसे धर्म-नीति का उपदेश देकर वे वहां से विहार कर गये ।
यह ऐतिहासिक घटना है जिसके कारण भक्तामर स्तोत्र की रचना हुई । इसी से मिलती जुलती कथा अन्यत्र भी मिलती है ।
श्री अमृतचन्द्र सूरि की तरह मानतुरंग मुनि के साथ भी आचार्य पद सूचक 'सूरि' शब्द का प्रयोग हुआ है ।
भक्तामर का प्रभाव
भक्तामर स्तोत्र अच्छा प्रभावशाली स्तोत्र है । णमोकार मंत्र के समान इसका प्रभाव भी अचिन्त्य है । स्वच्छ हृदय से श्रद्धा के साथ यदि भक्तामर स्तोत्र का पाठ किया जावे तो सब तरह के संकट दूर हो जाते हैं। यह बात हजारों व्यक्ति अनुभव कर चुके हैं, हमने भी चार-पांच बार इसका अनुभव किया है ।
अतः यह स्तोत्र प्रत्येक नर-नारी को शुद्ध कण्ठस्थ होना चाहिये और प्रति दिन इसका नियम-पूर्वक शुद्ध पाठ बड़ी श्रद्धा से करना चाहिये ।
श्लोक संख्या
इस स्तोत्र की पद्य संख्या ४८ है । इस स्तोत्र को कल्याणमंदिर के समान दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदाय मानते हैं परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित भक्तामर स्तोत्र में कल्याण मन्दिर