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- (३०) (अभिमान) रखने वाला है, आपको भी कुछ नहीं समझता, इसने राज-आज्ञा का अपमान किया है।' आदि।
राजा भोज का राज-मद जाग्रत हुआ, उसने क्रोध में आकर आज्ञा दो कि 'मानतुङ्ग को बलपूर्वक (जबर्दस्ती) पकड़ कर यहाँ ले आओ।' राज कर्मचारियों ने ऐसा ही किया। वे उन्हें पकड़कर राजदरबार में ले आये। . श्री मानतुङ्ग सूरि ने अपने ऊपर उपसग (उपद्रव) आया जानकर शान्ति के साथ मौन धारण कर लिया, वे आत्म-निमग्न हो गये। राजा भोज ने उन्हें चुप खड़ा देखकर क्रोध के आवेश में आज्ञा दी कि 'हमारे विद्वान् कालिदास के साथ आपको शास्त्रार्थ करना होगा अन्यथा आपको कारावास (जेल) भेज दिया जावेगा।' . मानतुङ्ग ने जब राजा की बात का कुछ उत्तर न दिया तब राजा भोज क्रोध में और भी अधिक लाल हो गया। उसने बिना हित अहित विचारे आज्ञा दी कि 'मानतुङ्ग को बन्दीघर (जेल) के सबसे भीतरी कक्ष में हथकड़ी बेड़ी पहनाकर बन्द कर दो।'
राज कर्मचारियों ने उनको लोहे को हथकड़ी बेड़ी पहना कर ४८ कोठों के भीतर वाले कोठे में बन्द कर दिया और कड़ा पहरा बिठा दिया गया।
रात्रि के पिछले पहर श्री मानतुग सूरि ने भगवान् आदिनाथ की भक्ति में लीन होकर
_ 'भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणां' श्री आदिनाथ (भक्तामर)स्तोत्र की रचना की। क्रमशः पद्य रचना का पाठ करते हुए जब उन्होंने ४६ वां पद्य
आपाद-कण्ठ-मुरु-शृङ्खल-वेष्टिताङ्गाः,
गाढं वृहन्निगड-कोटि-निघृष्ट-जङ्घाः । त्वन्नाम-मन्त्र-मनिशं मनुजाः स्मरन्तः,
सद्यः स्वयं विगत-बन्ध-भया भवन्ति ।।