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________________ ( २६) विद्वानों के साथ श्री मानतुङ्ग सूरि के दर्शन करने उनके निकटं गया। संस्कृत भाषा के प्रसिद्ध कवि कालिदास भी उसके साथ थे। राजा भोज ने मुनिराज के दर्शन किये और दर्शन करके बहुत प्रसन्न हुआ। उस समय कालिदास ने ईर्ष्या से मानतुङ्ग सूरि का महत्व कम करने के अभिप्राय से तथा अपनी विद्वत्ता का प्रभाव जमाने के लिये उनके साथ कुछ छेड़-छाड़ कर दी। श्री मानतुङ्ग सूरि केवल चारित्र में ही उन्नत न थे उनका ज्ञान भी तार्किक तथा दार्शनिक विद्वत्ता से बहुत उन्नत था, संस्कृत भाषा पर उनका अच्छा अधिकार था। उधर कालिदास केवल कवि थे । अतः उन्होंने थोड़े से समय के वाद-विवाद में ही कालिदास को निरुत्तर कर दिया। इस तरह कालिदास को बहुत लज्जित होना पड़ा। घर आकर कालिदास ने रात्रि को कालीदेवी की आराधना की और दूसरे दिन . राजसभा में आकर राजा भोज से अनुरोध किया कि मानतुङ्ग सूरि को यहाँ राजसभा में बुलावें, मैं उनके साथ शास्त्रार्थ करूँगा। कालिदास का भारी अनुरोध देखकर राजा भोज ने मानतुङ्ग सूरि को राज-दरबार में बुलाने के लिये अपने अनुचर भेजे । राज-कर्मचारियों ने श्री मानतुङ्ग सूरि से राज-आज्ञा-अनुसार राजसभा में चलने का निवेदन किया। श्री मानतुङ्ग आचार्य ने कहा कि हम संसार के सभी कारबार का त्याग कर चुके हैं, अतः किसी राजकार्य से हमारा कुछ सम्बन्ध नहीं, इस कारण राजसभा में आने की. हमें क्या आवश्यकता है ? यदि कोई वार्तालाप हमसे करना हो तो राजा यहाँ आकर कर सकता है, हम राजसभा में नहीं आते । राजकर्मचारियों ने मानतुङ्ग सूरि का उत्तर राजा भोज को कह सुनाया । उत्तर सुनकर कालिदास ने भोज को और भी भड़काया कि 'यह यथा नाम तथा गुण वाला बड़ा तुङ्ग (ऊँचा) मान
SR No.002453
Book TitleBhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherShastra Swadhya Mala
Publication Year1974
Total Pages152
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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