SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लाभ प्राप्त किया। इनकी भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक कथाएँ परम्परा से दन्तकथा के रूप में चली आ रही हैं । ___स्वयम्भू, भक्तामर, कल्याण मन्दिर, एकीभाव आदि आद्य शब्दों के कारण इन स्तोत्रों का नाम इन्हीं शब्दों से प्रसिद्धि में आया है। भक्तामर-स्तोत्र ___ मनुष्य जब किसी घनघोर संकट में फंस जाता है उस समय वह अन्य साधारण उपायों का अबलम्बन छोड़कर अपने सर्वोच्च इष्ट-परमात्मा की आराधना में तन्मय हो जाता है, उस परमात्मतन्मयता से उसमें अपूर्व बल और अदम्य-साहस प्रगट होता है तथा उस समय कोई ऐसा अद्भुत चमत्कार उद्भूत होता है. जो उसकी निराशा को आशा में परिणत कर देता है और उसके संकट को खण्ड खण्ड कर देता है । स्वयम्भूस्तोत्र आदि स्तोत्रों की रचना के समय ऐसे ही प्रभावशाली चमत्कार हुए। भक्तामर स्तोत्र की रचना का इतिहास भी ऐसा ही है। श्री मानतुङ्ग सूरि एक अच्छे जैन तपस्वी थे । इनका जीवनकाल वही है जबकि प्रख्यात विद्याप्रेमी राजा भोज शासन करता था। ___मानतुङ्ग सूरि बिहार करते हुए जब उसकी नगरी में आये, तब वे नगर के बाहर एकान्त स्थान में ठहर गये । नगर के नर-नारी उनके दर्शन वन्दना के लिये उनके निकट पहुंचे, आचार्य महाराज ने सबको हित-कारक उपदेश देकर उन्हें सन्मार्ग की ओर उन्मुख किया । उनके शान्त, निःस्पृह, तेजस्वी, विद्वत्तापूर्ण, सच्चरित्र व्यक्तित्व का जनता पर अच्छा प्रभाव पड़ा, अतः नगर में उनके नाम की धूम मच गई। राजा भोज के कानों तक भी यह बात पहुंच गई, अतः वह भी । ऐसे महात्मा के दर्शन का लोभ संवरण न कर सका । वह अपने
SR No.002453
Book TitleBhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherShastra Swadhya Mala
Publication Year1974
Total Pages152
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy