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स्तोत्र के समान ४४ पद्य स्वीकृत किये गये हैं । आठ प्रातिहार्यो के प्रतिपादक ८ श्लोकों में से श्वेताम्बरीय भक्तामर स्तोत्र में ४ श्लोक छोड़ दिए हैं। ऐसा करने से शेष चार प्रातिहार्यो का प्रतिपादन कम हो जाता है, अतः चार श्लोकों का कम करना गलत ठहरता है । - श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी प्रातिहार्य आठ हो माने गये हैं । कल्याणमन्दिर स्तोत्र में भी आठ प्रातिहार्यों का वर्णन है ।
कहीं कहीं उपलब्ध लिखित पुस्तकों में भक्ताकर स्तोत्र में ५२ श्लोक मिलते हैं परन्तु न तो वे अतिरिक्त ४ श्लोक उपयोगी हैं क्योंकि उनमें पुनरुक्त कथन है, न भाषा की दृष्टि से उनका मेल भक्तामर के ४८ श्लोकों के साथ ठीक बैठता है । अतः भक्तामर स्तोत्र की श्लोक संख्या ४८ ही ठीक बैठती है ।
मन्त्र-यन्त्र
श्री मानतुंग सूरि ने प्रभावशाली मन्त्रों के बीज भक्तामर स्तोत्र में अच्छे चातुर्य से निविष्ट कर दिए हैं। अतः यह समग्र स्तोत्र ही मन्त्र रूप है ।
तदनुसार किसी मन्त्रवादी विद्वान् ने भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक का पृथक् पृथक् यन्त्र तथा मन्त्र ठीक मन्त्र व्याकरण के अनुसार बना दिया है । यह कृति किस विद्वान् की है यह ज्ञात नहीं हो
सका ।
श्री मानतुंग सूरि के पश्चात् जैन परम्परा में भट्टारकीय प्रथा का प्रारम्भ हुआ था । भट्टारकों में अनेक भट्टारक अच्छे मन्त्रशास्त्रवेत्ता विद्वान् हुए हैं । संभवतः उनमें से ही किसी ने यन्त्र मन्त्र की रचना की है ।
विक्रम सं० १६६७ आषाढ़ सुदी ५ बुधवार को श्री वादिचन्द्र मुनि के शिष्य पं० रायमल्ल जी ने ग्रीवापुर में मही नदी के किनारे चन्द्रप्रभ के मन्दिर में भक्तामर स्तोत्र की वे कथाएं संस्कृत भाषा में