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________________ गई। वहाँ से आकर वे भविष्यत् काल के सर्व प्रथम तीर्थङ्कर बनेंगे। यह भक्ति का कितना अनुपम उदाहरण है। तीर्थङ्करों के जन्म-कल्याणक के वर्णन में आता है कि सौधर्मेन्द्र भगवान् के गुणों से अनुरक्त होकर भक्तिभाव में इतना तन्मय हो जाता है कि स्वयं नृत्य करने लगता है । वह अपने अपार ऐश्वर्य, अपरिमित विभूति तथा अपनी शान शौकत को भूल जाता है । उसे यह ध्यान नहीं रहता कि नृत्य करने के लिए अनेक नृत्य करने वाली देवियाँ विद्यमान हैं. मुझे नृत्य करने की क्या आवश्यकता है ? फिर मैं इतने देवों का अधिपति हूँ, ये सब मुझे नृत्य करते देखकर क्या कहेंगे, पर अन्तरंग की भक्ति के उद्रेक के कारण उसका मनमयूर ही नहीं नाचता, वह स्वयं भी नाचने लगता है। अपनी इस अटूट सद्भक्ति के कारण वह अपने अगले मानव जीवन से ही मोक्ष प्राप्त करता है । इतना ही नहीं उसकी इन्द्राणी भी इस अवसर पर इस प्रकार भक्ति में गद्गद् हो जाती है कि वह अपनी भक्ति की प्रबलता के कारण स्त्रीपर्याय को छेदकर अगले मानव भव से मोक्ष की अधिकारिणी बन जाती है । ये है सच्ची भक्ति की महिमा । ___सच्ची भक्ति तभी सम्भव है जब भगवान् के गुणों में अनुराग हो । यह गुणानुराग भक्त को अपने आत्मगुणों के विकास की प्रेरणा देता है जिससे भक्त एक दिन स्वयं भगवान् बन जाता है। भक्ति किसकी की जाय ? आत्म-कल्याण के इच्छुक के लिए भक्ति अरहन्त भगवान् की ही क्यों करनी चाहिए, अन्य देवों की क्यों नहीं ? इस विषय में विद्यानन्द स्वामी श्लोक वार्तिक में कहते हैं।
SR No.002453
Book TitleBhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherShastra Swadhya Mala
Publication Year1974
Total Pages152
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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