________________
((२४) अभिमत-फल-सिद्धरभ्युपायः सुबोधः । स च भवति हि शास्त्रात्तस्योत्पत्तिराप्तात् ।। इति भवति स पूज्यस्तत्प्रसादात्प्रबुद्धेः ।
न हि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति ।। अर्थात्-अभीष्ट फल की सिद्धि का साधन सम्यग्ज्ञान है । वह सम्यग्ज्ञान शास्त्र से होता है। उस शास्त्र की उत्पत्ति आप्त-सच्चे देव-वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी अरहन्त देव से होती है । इस लिये वे देवाधिदेव अरहन्त भगवान् हम सबके द्वारा पूज्य हैं, आराध्य हैं, उपास्य हैं, ध्येय हैं, ज्ञेय हैं। सज्जन पुरुष किये हुई उपकार को नहीं भूलते और अरहन्त भगवान् से सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति होने के कारण वे उनकी भक्ति करते हैं ।
उनके द्वारा जो अनेकान्त रूप उपदेश दिया गया, आत्म-कल्याण का साधन होने से वही सच्चा शास्त्र है तथा उस मार्ग पर चलने वाले सच्चे वीतरागी निर्ग्रन्थ साधु ही सच्चे गुरु हैं । इन देव शास्त्र गुरु का सच्चा श्रद्धान ही सम्यग्दर्शन है जो मोक्ष महल की पहिली सीढ़ी है । इस प्रकार अरहन्त-भक्ति मोक्ष-प्राप्ति का सीधा साधन है। ५. इसी बात को और स्पष्ट देखिये :जिने भक्तिजिने भक्र्तािनने भक्तिः सदास्तु मे। सम्यक्त्वमेव संसार-वारणं मोक्ष-कारणम् ।।
अर्थ-जिनेन्द्र भगवान् के चरणों में सदा भक्ति बनी रहे क्योंकि जिन भक्ति संसार के बन्धन से छुड़ाने वाली है और जो संसार से छुड़ाने तथा मोक्ष प्राप्ति का कारण है, वही सम्यक्त्व है।
भक्ति का लक्ष्य _ जो व्यक्ति जिनेन्द्र भक्ति के द्वारा लौकिक इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता है वह भक्ति की वास्तविकता को नहीं समझा तथा