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________________ (२२) प्रकटकर सम्राट विक्रमादित्य को चकित और नतमस्तक कर दिया था। विषापहार स्तोत्र से उसके बनाने वाले महाकवि धनञ्जय के पुत्र का सर्वविष उतर गया था तथा पुत्र इस प्रकार उठ खड़ा हुआ था जैसे कोई सोते से जाग जाता है। भूपाल कविकृत जिन-चतुर्विंशतिका का भी बड़ा प्रभाव बताया जाता है। हिन्दी में भी भनेक सुन्दर स्तुतियाँ विद्यमान हैं और "नरेन्द्रं फणीन्द्रं सुरेन्द्र अधीशं' तथा 'अब मेरी व्यथा क्यों न हरो, बार क्या लगी' आदि स्तुतियों का महत्व और कथायें भी प्रसिद्ध हैं। कुछ उदाहरण भक्ति के द्वारा उन्नति की अनेक कथायें शास्त्रों में वर्णित हैं। जिन जीवों ने श्रद्धा भक्ति से णमोकार मंत्र को सुना, अपने परिणामों को शान्त करके वे तिर्यञ्च (पशु) भी देवगति को प्राप्त हुये। भगवान पार्श्वनाथ के चरित्र में सर्प सर्पिणी के धरणेन्द्र-पद्मावती बन जाने की कथा सर्व-विदित है। __भगवान् महावीर की भक्ति के विचार से अपने मुख में कमल की पंखुड़ी दबाकर जाता हुआ मेंढक मार्ग में हाथी के पैर के नीचे आकर मर गया और देव हो गया। उसने महावीर स्वामी के समोशरण में पहुंच कर उपदेश का लाभ लिया। इस तरह भक्ति से सद्गति मिलती है और वहाँ आत्मोन्नति के प्रचुर साधन मिलने से आगे जीव आत्म-विकास कर सकता है। इसी प्रकार अन्य अनेक कथायें भक्ति का महत्त्व प्रकट कर रही हैं। __राजा श्रेणिक ने अपने कठोर परिणामों के कारण सातवें नरक का बन्ध किया हुआ था पर उनका जीवन बदला और उत्कृष्ट भक्ति के कारण वे महावीर स्वामी के प्रतिष्ठित भक्त कहलाये । उनकी सम्यक् श्रद्धा ने उन्हें इतना ऊंचा उठाया कि सातवें नरक की ३३ सागर की आयु घट कर पहले नरक में ८४ हजार वर्ष की आयु रह
SR No.002453
Book TitleBhaktamar Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherShastra Swadhya Mala
Publication Year1974
Total Pages152
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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