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युक्त तासाब तो सुख पहुँचाते हैं पर ऊन तालाबों की शीतल हवा भी सुख पहुंचाती है।
प्रसिद्ध जैन स्तुतिकार गौतम गणधर ने भगवान् को वीतराग जानते और मानते हुये भी उनकी भक्ति की तथा आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने बड़े-बड़े स्तोत्रों तथा ग्रन्थों की रचनायें की हैं। स्वामी समन्तभद्र महान् तार्किक तथा वादविवाद पटु और धर्मप्रचारक हुये हैं। आपने अपने स्वयम्भू-स्तोत्र, युक्त्यनुशासन, देवागमस्तोत्र (आप्तमीमांसा) तथा स्तुतिविद्या जैसे महान् ग्रन्थ स्तुति रूप में ही लिखे। उनमें जैनधर्म के सिद्धान्तों का उच्चकोटि का वर्णन विद्यमान है । वे आद्य-स्तुतिकार माने जाते हैं तथा यह बात प्रसिद्ध है कि वे भविष्यत्-काल में तीर्थङ्कर होंगे। वे अत्यन्त तेजस्वी थे, उन्होंने भक्ति में तल्लीन होकर जब भगवान की स्तुति की थी तो एक अन्य मूर्ति में से भगवान् चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र की प्रतिबिम्ब निकल आई थी। ... उसके पश्चात् स्तोत्रों की एक परम्परा चली। बड़े-बड़े आचार्यों ने भी स्तोत्र लिखकर अपना भक्तिभाव भगवान के चरणों में भेंट किया। जैन वाङ्मय में स्तोत्रों का अच्छा संग्रह है तथा उनका महत्वपूर्ण स्थान है। समाज में पंचस्तोत्रों का बड़ा प्रचार है तथा प्रत्येक स्तोत्र के साथ उसके प्रभाव को कथायें भी विद्यमान हैं। भक्तामर स्तोत्र के पाठ से श्री मानतुंगाचार्य ४८ तालों के भीतर से निकलकर बाहर आ गये थे। एकीभाव स्तोत्र से उसके रचयिता वादिराज मुनिराज का कुष्टरोग दूर होकर उनका शरीर अत्यन्त दैदीप्यमान् बन गया था।
कल्याण मन्दिर स्तोत्र तो साक्षात् कल्याण का मन्दिर ही है जिसके रचयिता श्री कुमुदचन्द्राचार्य ने अपार जनता के समक्ष ओंकारेश्वर में एक अन्य मूर्ति में से भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिबिम्ब