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________________ ७२ ] [ तित्थोगाली पइन्नय तो उग्गासिद्धथग,-सव्वोसहि कुसुम न्हाणवासेहिं । अच्चुय इंदो दससुवि, जिणाभिसेयं करेसिण्हं ।२४१ ततः उदक-सिद्धार्थक-सौंषधि-कुसुम-स्नान-वस्त्रेभ्यः । अच्युतेन्द्रः दशष्वपि' जिनाभिपेकं करोति स्म ।) ___ तत्पश्चात् दसों ही स्थानों पर अच्युतेन्द्र सिद्धार्थक, सभी प्रकार की औषधियों, कुसुमों, स्नान एवं वस्त्रादि से दसों ही तीर्थङ्करों का जन्माभिषेक करते है ।२४१। अवसेसावि सुरवति, तेणेव कमेण पाणयाईया । सबिड्ढीए सपरिसा, जिणमिसेयं करेसिण्हं ।२४२। अवशेषा अपि सुरपतयः, तेनैवेमया' प्राणतादिकाः ।) सर्वर्द्ध या सपरिषदया, जिनाभिषेकं कुर्वन्ति स्म ।) . ___अच्युतेन्द्र द्वारा किये जिनजन्माभिषेक के अनुसार उसी विधि से शेष इन्द्र भी अपने अपने सुरसमाज और उत्कृष्ट ऋद्धियों के साथ उन दसों ही जिनेश्वरों का जन्माभिषेक करते हैं ।२४२। जाहे कया सव्वेहिं, अभिसेया देव दाणवेहिं वा । ' सक्कीसाणा दोन्नि वि, धवलवसहसिंगधारा हिं ।२४३। (यदा कृता सर्वैः अभिषेकाः देव-दानवैर्वा शक्र शानौ द्वावपि, धवल वृषभ, गधारिभः' ।) सभी देव-दानवेन्द्रों द्वारा उक्तविधि से जन्माभिषेक सम्पन्न हो जाने के अनन्तर शक तथा ईशानेन्द्र ने श्वेत वृषभों के के शृगों से निकली जलधाराओं से जिनेश्वरों का अभिषेक किया ।२४३। चउ उदहि सलिल सरिया, जलं च वसभेसु पक्खिवति सुराः । असुरसुरच्छरसहिया, जिणाभिसेगं करेऊणं ।२४४। १ अध्याहारेण 'स्थानेषु'-इति वाच्यम् । २ अध्याहारेण 'विधिना'- इति वाच्यम् । ३ "जिनाभिषेकं कुरुतः ।' इत्यध्याहारेणात्र ग्राह्यम् ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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