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________________ तित्योगालो पइन्नय } [ ७१ घोड़ों को हिनहिनाहट, हाथियों की चिंघाड़, रथों की घरघराहट और देव समाज द्वारा किये गये सिंहनादों तथा जयघोषों से धरती डगमग- डगमग डोलने लगी और आकाश फटने सा लगा।२३७। नच्चंति अच्छाओ, अभिणय अंगोवहार पडिपुण्णं । चउरंगहार मणहर, सहावभावं ससिंगारं ।२३८। नत्यन्ति अप्सरसः, अभिनय अंगोपहार प्रतिपूर्णम् ।' चतुरंगहार मनहर-सहावभावं सशृगारम् । अप्सराएं हावभावों से भरपूर, शृगाररस से ओतप्रोत, अभिनय और भावपूर्ण अंगभंगिमानों से परिपूर्ण चार प्रकार का मनोहर नृत्य करती हैं ।२३८।। तो पइय भेरि झल्लरि, दुदु हि गंभीर महुर निग्योसो । अंबरतले विचंभइ , हरिसक्करिसं जणेमाणो ।२३९। (ततः प्रहत-भरि-झल्लरी, दुदुभिगंभीरमधुरनिर्घोषः । अम्बरतले विश्चम्भति, हर्षोत्कर्ष जनयन् ।) प्रताडित भेरियों, झल्लरियों एवं दुदुभियों का घनगर्जन तुल्य गम्भीर और मधूर घोष प्रत्येक के मानस में उत्कृष्ट हर्ष उत्पन्न करता हुप्रा गगनमण्डल में प्रतिध्वनित तथा व्याप्त हो जाता है ।२३६। ससुरासुरनिग्योसो, कहकहक्कुडिकलयलसणाहो । मुच्चइ दससुदिसासु, पक्खुभिय महोदहिसरिच्छो ।२४०। (स सुरासुरनिर्घोषः, कहक्कहोत्कटकलकल सनाथः । मुचति दशपु दिशाषु, प्रक्षुभित महोदधि-सदृशः ।) सुर एवं असूर समाज द्वारा किये गये जय आदि घाषों, कलकल निनादों सहित वातावरण को मुखरित कर दने वाले उत्कट कहकहों से उत्पन्न वह सम्मिश्रित निर्घोष विक्षुब्ध महासागर के समान दशों दिशाओं में उन्मुक्त रूप से बढ़ने लगा ।२४०।। १ मध्याहारेणात्र 'नृत्यम्' इति वाच्यम् । २ गुज्जई। ३ गुजति ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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