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________________ ६४ ] [ तित्थोगाली पइन्नय (तेषां बहुमध्यदेशे, चूलाः जिनभवनशोभिताः रम्याः। वैडूर्य विमलरूपाः, पंचाष्टक योजनोद्विद्धाः ) ___ उन पाण्डुकवनों के बिल्कुल मध्य भाग में जिन-भवनों (जिन मन्दिरों) से सुशोभित, वैडूर्य मणि की स्वच्छ श्वेत प्रति रमणीय. पांच योजन चौड़ी और पाठ योजन लम्बी, चूलाएं हैं ।२१२। पंचण्हव मेरूणं, चूला एक्केक्किया मुणेयव्या । . सासय जिणभवणाओ, हवंति पंचेव चूलाओ .२१३। (पंचानामपि मेरूणां, चूला एकैकाः मुनेतव्या । शाश्वतजिनभवनात् , भवन्ति पंचैत्र चूलाः ।) पांचों ही मेरु पर्वतों की एक एक चूला जाननी चाहिये । वे पांचों चूलाएं शाश्वत जिन-भवन स्वरूपा होती हैं ।२१३। । बारस जोयण पिहुलाओ, ताओ ठवणं तु जोयणे चउरो। तासिं चउदिसि पि य, सिलाउ चचारि रमाउ ।२१४।। द्वादशयोजनपृथुलाः, ताः स्थापनं तु योजनानि चत्वारि। . तासां चतुर्दिग्स्वपि च, शिला, चतखः रम्याः ।) . प्रत्येक चूला १२ योजन पृथुल अर्थात् मोटी तथा चार योजन स्थापना (आधार शिला) वाली होती हैं। उन पांचों चूलाओं के चारों ओर चारों दिशाओं में बड़ी ही सुन्दर चार शिलाए होती हैं ।२१४: ' पंचसयायामाओ, मज्झे दीघतणरुंदाओ । चंदद्धसंठियाओ, कुमुयवरहार गोराओ ।२१५॥ (पंचशतायामाः, मध्ये दीर्घतायार्द्ध रुंदाः । चन्द्रार्द्धिसंस्थिताः, कुमुदवरहारगौराः ) । ... उनमें से प्रत्येक शिला ५०० योजन विस्तार वाली, मध्यभाग में स्थूल तथा उत्तरोत्तर मुटाई में घटते घटते अन्त में तृण के अर्धभाग तुल्य मोटी, चन्द्राकार तथा श्रेष्ठ कुमुद पुष्प के हार सदृश गौरवर्ण की होती है ।२१५॥
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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