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तित्थोगाली पइन्नय ]
आनन्द प्रदान करने वाले और इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न हुए उन त्रैलोक्यनाथ तीर्थंकरों को देखते हैं । २०१
अहजिण दंसण वियसिय, मुहकमलाबंदिऊण जिणचंदे | देवगण परिबुडा इंदा जिण जम्मभवणाणं | २०२ । ( अथ जिनदर्शन विकसित, मुखकमलाः वंदित्वा जिनचन्द्रान् । देवगण संपरिवृताः, इन्द्रा : जिन- जन्मभवनानाम् ।)
जिनेन्द्र भगवन्तों के दर्शन जन्य हर्षातिरेक से प्रफुल्ल वदनारविन्द एवं देववृन्द से परिवृत्त इन्द्रों ने दशों तीर्थ करों को वन्दन कर जिनेन्द्रजन्म प्रासादों के । २०२०
अह पासे ठाऊणं, भणति सेणावई पयणं ।
जणी सगासाओ, आणेह जिणे विणणं २०३।
(अथ पार्श्वे स्थित्वा भणन्ति सेनापतिं प्रयत्नेन ।
जननीनां सकाशात् आनय जिनान् विनयेन ।)
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पास अवस्थित हुए और उन्होंने शक्र सैन्य के सेनानी हरिनैगमेषी दव को आदेश दिया कि वे पूर्ण विनय पूर्वक नवजात तीर्थंकरों को उनकी माताओं के पास से पूरी सावधानी के साथ ले आयें । २०३०.
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तो ते हरिसियवयण साहिऊण अहो सुही जिणवरिंदे | थित विणाय विणया, उवणंति सहस्सनयणाण | २०४| ( ततस्ते हर्षितवचनाः साक्षी घयित्वा अहो ः सुखीन् जिनवरेन्द्रान् । स्थितान् विज्ञातविनयेन, उपनयन्ति सहस्रनयनानाम् )
इन्द्रों की आज्ञा को सहर्ष शिरोधार्य कर विनय विधि के विशेषज्ञ हरि नैगमेषी देव सुखनिधान जिनेश्वरों का इन्द्रों के पास लाते हैं । २०४
अह ते देवाणवई, नयणसहस्सेहिं जिणवरे तझ्या |
नवि तिष्यंतता, तिहुयण सोहमहिव्य सोमे । २०५ ।