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________________ तित्योगाली पइन्नय ] [ ५५ (ततः भवनाधिपतयो विंश, षोडश च व्यन्तराधिपतयः । चन्द्रादित्यादिग्रहाः, सऋक्षास्तारागण समग्राः ।) तदनन्तर बोस भवनेन्द्रों, सोलह व्यन्तरेन्द्रों, चन्द्र, सूर्य, ग्रहों, नक्षत्रों सहित समस्त तारागणों ।१८०। कप्पाहिवती वि तो, ओहिनाणेण जाणिऊण जिणे । जाहे जाया समहिय, मयंक सोमाण सच्छा य ।१८१। (कल्पाधिपतयोऽपि ततः, अवधिज्ञानेन ज्ञात्वा जिनान् । यदा जाताः समधिक मृगांकशोभनच्छाया ।) ___और कल्पेन्द्रों ने अवधि ज्ञान से जब यह जाना कि चन्द्र और सूर्य से भी अधिक निर्मल एवं तेजस्वी जिनेन्द्रों का जन्म हो गया है १८१॥ तो हरिस गग्गर (द्) गिरा, सहरसमभुट्ठिया सपरिवारा । महियलनमिय वरंगा, संथुणियं आयरतरेण ।१८२। (ततः हर्षगद्गगिरः, सहर्षमभ्युत्थिताः सपरिवाराः । महितलनमित वरांगाः, संस्तुतं आदरतरेण ।) . तो वे सब हर्ष गद्गद् वचन बोलते हुए सहसा अपने परिवार सहित उठ खड़े हए और पृथ्वीतल पर अपना मस्तक झुका कर बड़े आदर के साथ उन्होंने तीर्थंकरों की स्तुति की । १८२। सव्विड्ढीए सपरिसाए, हरिसवसुज्जुया सभत्तीआ । जिणचंदे दट्ठमणा जाणविमाणेहिं आगया तुरिअं ।१८३। (सर्व र्या सपरिपदा, हर्षवशोधताः सभक्तिकाः । जिनचन्द्रान् द्रष्टुमनाः यानविमाने आगताः त्वरितम् ।) उन्होंने हर्षविभोर हो भक्तिपूर्वक अपने अपने समस्त परिवार सहित अति शीघ्र ही पूरी तैयारी की और जिनचन्द्रों के दर्शनों की तीव्र उत्कण्ठा मन में लिये वे सम्पूर्ण दिव्य देवद्धियों के साथ यानविमानों से तत्काल जिन-जन्म-भवनों पर पहुंचे ।१८३।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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