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तित्थोगाली पइन्नय ]
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रुचक पर्वत के विदिशा कूटों पर निवास करने वाली चित्रा, चित्रकनका, शतेरा और सौदामिनी ये चार दिक्कुमारियां । १५६ । चउसु दिसामु ठियाउ, जिणवराण माणीणं ।
महुरं गायंतीओ, विज्जुज्जोय करेंति हू । १६० । (चतुस्तु दिशा स्थिताः, जिनवराणां मातृणाम् । मधुरं गायन्त्यः, विग्रदुद्योतं कुर्वन्ति खलु ।)
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जिनेन्द्र भगवन्तों की माताओं के चारों ओर चारों दिशाओं में खड़ी हो मधुर गान के साथ-साथ विद्युत का प्रकाश करती हैं । १६० ।
रुयगस्स मज्झओ जे, दिसासु चचारि दिसिकुमारीओ | रुयगा रुयगजसावि य, सुरूप रुयगावर सनामा १६१ । ( रुचकस्य मध्यतः याः दिशाषु चत्वारि दिक्कुमारिकाः । रुचका रुचकयशापि च, सुरूप रुचकावती सनामा 1)
रुचक पर्वत के मध्य भाग की चारों दिशाओं में रहने वाली रुचका, रुचकयशा, सुरूपा और रुचकावती । १६१। एया उ जणणीणं चउद्दिसिं चउरमहुर भणिया उ । दीaिय हत्थगया उ उब्बिति पगायमाणीओ | १६२ | ( एतास्तु जननीनां चतुर्दिक्सु चतुर - मधुरभणिताः । दीपिका हस्तगताः, उपतिष्ठन्ति प्रगायमानाः । )
ये चारों चतुर और मधुरभाषिणी दिक्कुमारियाँ जिनेन्द्रों को माताओं के चारों ओर चारों दिशाओं में गीत गाती हुई अपने हाथों में प्रकाश पुंज लिये खड़ी रहती हैं । १६२ |
रुगस्स मज्झ देसे, वसंति विदिसासु दिव्व देवीओ । विजया य वेजयन्ती, जयन्ति अपराजिया चेव । १६३ | ( रुचकस्य मध्यदेशे, वसंत विदिशासु दिव्य-देव्यः । विजया च वैजयन्ती, जयन्ती अपराजिता चैव 1)