SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ ४६ रुचक पर्वत के विदिशा कूटों पर निवास करने वाली चित्रा, चित्रकनका, शतेरा और सौदामिनी ये चार दिक्कुमारियां । १५६ । चउसु दिसामु ठियाउ, जिणवराण माणीणं । महुरं गायंतीओ, विज्जुज्जोय करेंति हू । १६० । (चतुस्तु दिशा स्थिताः, जिनवराणां मातृणाम् । मधुरं गायन्त्यः, विग्रदुद्योतं कुर्वन्ति खलु ।) 1 जिनेन्द्र भगवन्तों की माताओं के चारों ओर चारों दिशाओं में खड़ी हो मधुर गान के साथ-साथ विद्युत का प्रकाश करती हैं । १६० । रुयगस्स मज्झओ जे, दिसासु चचारि दिसिकुमारीओ | रुयगा रुयगजसावि य, सुरूप रुयगावर सनामा १६१ । ( रुचकस्य मध्यतः याः दिशाषु चत्वारि दिक्कुमारिकाः । रुचका रुचकयशापि च, सुरूप रुचकावती सनामा 1) रुचक पर्वत के मध्य भाग की चारों दिशाओं में रहने वाली रुचका, रुचकयशा, सुरूपा और रुचकावती । १६१। एया उ जणणीणं चउद्दिसिं चउरमहुर भणिया उ । दीaिय हत्थगया उ उब्बिति पगायमाणीओ | १६२ | ( एतास्तु जननीनां चतुर्दिक्सु चतुर - मधुरभणिताः । दीपिका हस्तगताः, उपतिष्ठन्ति प्रगायमानाः । ) ये चारों चतुर और मधुरभाषिणी दिक्कुमारियाँ जिनेन्द्रों को माताओं के चारों ओर चारों दिशाओं में गीत गाती हुई अपने हाथों में प्रकाश पुंज लिये खड़ी रहती हैं । १६२ | रुगस्स मज्झ देसे, वसंति विदिसासु दिव्व देवीओ । विजया य वेजयन्ती, जयन्ति अपराजिया चेव । १६३ | ( रुचकस्य मध्यदेशे, वसंत विदिशासु दिव्य-देव्यः । विजया च वैजयन्ती, जयन्ती अपराजिता चैव 1)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy