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रूयगावर कूड निवासिणीओ पच्चत्थिमेण जणणीणं । गायन्ती चि ंति, तालिबेटे गहेऊणं । १५६ । ( रुचका पर कूट - निवासिन्यः, पश्चिमेन जननीनाम् । गायन्त्यः तिष्ठन्ति, तालवृन्तान् गृहित्वा ।)
[ तित्थोगाली पइन्नय
ये रुचक पर्वत के अपर कूट पर निवास करने वाली दिक्कुमारिकाएं जिनेन्द्रों की माताओं के पश्चिम पार्श्व की ओर गाती हुई तथा व्यंजन हाथ में लिये उपस्थित रहती हैं । १५६ । ततो अलंबुसा, मिस्सकेसी तह पुंडरिगिणी चेव । वारुणीहासा सव्वग, सिरी हिरी चैत्र उत्तरओ । १५७/ ( ततोऽलंबुषा, विश्वकीर्ति तथा पुंडरीकिणी चैव । वारुणीहासा, सर्वगा, श्रीश्चैव ही उत्तरतः )
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रुचक पर्वत की उत्तर दिशा में रहने वाली दिशा कुमारियांअलम्बुषा, मिश्रकेशी, पुण्डरी किरणी वारुणी, हासा, सर्वगा (सर्व प्रभा), श्री और ह्री । १५७ |
चामर हत्थगयाओ, चउरामहुरभणियाओ । गायंती महुरं, चिट्ठति दससु वासेसु । १५८ । ( चामर हस्तगताः, चतुराः मधुरभाषिण्यः । गायन्त्यस्तु मधुरं, तिष्ठन्ति दशसु वर्षेषु ।)
बड़ी ही चतुर और प्रिय भाषिणियां होती हैं. वे दशों क्षेत्रों की जिन माताओं के चारों ओर चंवर दुलातीं और मधुर गीत गाती हुई खड़ी रहती हैं । १५८।
रुगे विदिसाकडेसु, चचारि दिसिकुमारीओ ।
चित्ता य चित्तकणगा, सतर, सोयामणि सनामा । १५९ ।
(रुचके विदिशाकटेषु चत्वारि दिशि कुमारिकाः । चित्रा च चित्रकनकां, सतेरा सौदामिनीस्वनामा ।)