________________
तित्थोगाली पइन्नय ]
[ ४७
ये रुचकं पर्वत के पूर्व-कूट पर निवास करने वाली दिक्कुमारियां तीर्थङ्करों की माताओं के पूर्व की ओर हाथों में दर्पण लिये खड़ी रहती हैं । १५४।
रुयगे दाहिणकडे, अट्ठसमाहार सुप्पइण्णा य । तत्तो य सुप्पपुट्ठा, जसोधरा चैव लच्छिमई । १५५ ।
( रूचके दक्षिण कूटे, अष्टसमाहार सुप्रदत्ता च ।
ततश्च सुप्रपुष्टा, यशोधरा चैव लक्ष्मीमती ।)
रुचक, मध्यप्रदेशस्थ पर्वत के दक्षिण कूट पर निवास करने वाली आठ दिशाकुमारियां समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती । १५५॥
* १५४ र १५५ संख्या वाली उपरि लिखित दो गाथानों के प्रतिरिक्त ताड़पत्रीय प्रति में गाथा संख्या सूचक इन्हीं अंकों के साथ निम्नलिखित दो गाथाएं भी विद्यमान हैं :
भोगवती चित्रगुप्ता, वसुंधरा चैव गहिय भिंगारा | देवीण दाहिणं, चिट्ठति पगायमाणीओ | १५४ | ( भोगवती चित्रगुप्ता, वसुंधरा चैव गृहीत भृंगाराः । देवीनां दक्षिणेन तिष्ठन्ति प्रगीयमानाः । ) देवीउ देवजाइ, इलादेवी सुराय पुहवी एगनासा य । पउमावई णवमियाभद्दासीया य अडमिया । १५५ | ( देव्यः देवजातिः सुरा च पृथ्वी एकनाशा च । पद्मावती च नवमी, भद्रा, सीता च अष्टमिका ।)
भोगवती ( शेषवती) चित्रगुप्ता और वसुन्धरा अपने अपने हाथों में भारियां लिये जिनेन्द्र जननियों के दक्षिण की ओर गीत गाती हुई उपस्थित रहती हैं । १५४ |
देवजाति (इलादेवी), सरादेवी, पृथिवी, एकमाशा, पद्मावती, नवमिका, भद्रा और आठवीं सोता । १५५ ।