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________________ तित्थोगाली पइन्नय । [ ४५ मेघंकरा. मेघवती, सुमेघा, मेघमालिनी, विचित्रा, तोयधरा, बलाहका और वारिषेणा ।१४७। (जंबू द्वीप प्रज्ञप्ति में पांचवी और छठो देवियों का नाम सुवच्छा और वच्छमित्रा उल्लिखित हैं।) नंदणवणकडेसु, एयाओ उडढलोग वत्थव्वा । तुरियं वि उबिउणं, सगज्जिय सविज्जुले मेहे ।१४८। (नंदनवनकटेभ्यो, एताः उर्ध्वलोक वास्तव्याः । त्वरितं विउज्झित्वा, सगर्जितसविधु तान् मेघान् ।) । ऊध्वंलोक में नन्दनवन के कूटों पर निवास करने वाली ये देवियां बड़ी स्फूर्ति के साथ सुमधुर गर्जन और बिजली की चमक सहित बादलों की विकुर्वणा कर ।१४८। थोवाक्खिल्ल विरहियं, सुरहिजलबिंदु बिदवियरेणु । थाणयण' निव्वुइकरं करेंति वसुधातले तत्थ ।१४९। (स्तोकाखिल विरहितं, सुरभिजलबिन्दु विद्रावितरेणु । उत्थानमनं निर्वृतिकरं, कुर्वन्ति वसुधातले तत्र ।) न्यूनाधिक्य रहित सुगन्धित जलबिन्दुओं द्वारा धूलि को जमा कर वहां के पृथ्वीतल को हल्का गीला और आनन्दप्रद बना देती हैं । १४६। पुणरवि जलहर कलियं, सव्वोउ य संभवं सुरभिगंधिं । वासंति कुसुमवासं, सुवंगगंगेहिं वा मीसं १५०। (पुनरपि जलधरकलित, सर्वतश्च संभवं सुरभिगंधं । वर्षयन्ति कुसुमवृष्टिं, लगबंगामिश्रम् ।) तदनन्तरे वे विविध पुष्पों के बादलों को विकुर्वणा कर उस क्षेत्र पर लवंग-बंगादि की गंध से मिश्रित अत्यन्त मनोहर-मधुर पुष्पों की सर्वत्र समान रूप से वर्षा करती हैं । १५०। १ थाणय-देशी । मालवाळा अर्थात् छिड़काव किया हुप्रा ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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