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[ तित्थोगाली पइन्नय
भोगंकराभोगवती. सुभोगा तह भोगमालिणि सुपत्था । तत्तो चेव सुमिचा, अणिंदिया पुप्फमाला य ।१४४। (भोगकरा भोगवती, सुभोगा तथा भोगमालिती सुपथ्या । ततश्चैव सुमित्रा, अनिन्दिता पुष्पमाला च ।)
___ भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, सुवच्छा, सुमित्रा, अनिन्दिता और पुष्पमाला ।१४४। एया उ पवणेणं, सुभेण ते जम्मभूमिवणखंडे । । आलोयणं समंता, साहेति पहड़यमणाए ।१४५। (इमास्तु पवनेन, शुभेन ताः जन्मभूमि वन खण्डे । आलोडनं समंतात् , शासयन्ति प्रहर्षितमनाः ।)
__ ये (अधोलोक निवासिनी) दिशाकुमारियां शुभ-सुखद पवन विकूवित कर तीर्थंकरों के जन्मभवन और उसके चारों ओर एक योजन भूमि को बड़े हर्ष के साथ पूरी तरह परिमाजित कर स्वच्छ और सुन्दर बनाती हैं ।१४५॥ अमणुण्ण दुरभिगंधि, तण सक्क पर पत्च विरहियं काउं। .. महुरं गायंती उ, पासे चिट्ठति जणणीणं ।१४६। (अमनोज्ञ दुरभिगंध, तृण सिक्व परपत्र विरहितं कृत्वा । मधुरं गायन्त्यस्तु. पार्श्व तिष्ठन्ति जननीनाम् ।)
वे इस प्रमार्जन क्रिया द्वारा उस भूमि को अमनोज्ञ पदार्थो, दुर्गन्ध, तृण, पत्रादि से रहित बनाकर मधुर संगात गाता हुई तीर्थ - करों की माताओं के पास उपस्थित रहती हैं । १४६। मेहंकरा मेहबई. सुमेह तह मेहमालिणि विचित्ता । तचो य तोयधारा, वलाहका वारिसेणा य ।१४७। (मेघकरा मेघवती, सुमेघ तथा मेघमालिनी विचित्रा । ततश्च तोयधारा, बलाहका वारिषेणा च ।)