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तित्योगाली पइन्नय ]
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(सुतीर्थसमानाभिः, विकटं त्रिभुवनमलंकृतं प्रकटम् । प्रथमिल्लजगगुरवः, जनिताः तीर्थंकराः याभिः ।)
"संसार के सर्वोत्कृष्ट तीर्थ के समान (जिन) आपने प्रथम जगद्गुरुयों-तीर्थङ्करों को जन्म दिया है, वस्तुतः आपने विराट-..अति विशाल रैलोक्य को स्पष्टतः प्रकट रूप में अलंकृत किया है । १४०।" जिणजणणीउ थोउं, भणंति ताउ सुचारुवयणाउ । अम्हे इहागयाउ, भत्तीए दिसाकुमारीओ ।१४१। (जिनजननीन् स्तुत्वा, भणंति ताः सुचारुवचनानि । वयं इह आगताः, भक्त्या दिक्कुमार्यः ।)
जिनेश्वरों को माताओं की स्तुति करने के पश्चात् वे सुमधुर वचनों द्वारा निवेदन करती हैं- मातेश्वरियो ! ) 'हम दिशाकुमारियाँ हैं, जो यहां भक्तिपूर्वक आई हैं । १४१। जिणवंदाण भगवओ, बोच्छिण्णपुणब्भवाण विणएण | काहामो जम्ममहं, तुम्हेंहिं न भाइयव्वंति ।१४२। (जिनचन्द्राणां भगवता, व्युच्छिन्नपुनर्भवानाम् विनयेन । करिष्यामः जन्ममहं, युष्माभिर्न भेतव्यमिति ।)
"धर्म तीर्थ को इन क्षेत्रों में सुदीर्घकालीन व्युच्छित्ति के पश्चात् यहां पुनः उत्पन्न हुए इन धर्म तीर्थ संस्थापक जिनचन्द्र भगवन्तों का हम जन्म-महोत्सव करेंगी। अतः आपको अपने मन में किसी प्रकार का भय अथवा आशंका नहीं लानी चाहिए । १४२। सोमणसगंधमायण, विजुभमालवंतवासी उ । अट्ठदिस दिव्य वाउं, वच्छवच्छ व्याओ अहोलोए ।१४३। (सौमनस गंधमादन, विद्य त्प्रभमाल्यवन्त वासीन्यः । अष्टदिश दिव्य वायु वत्सं वत्सं वास्तव्या अधोलोके ।)
सौमनस, गन्धमादन, विद्य त्प्रभ और माल्यवन्त में निवास करने वाली पाठ दिशाकुमारिका देवियां अधोलोक की निवासिनियां मानी जाती हैं । १४३॥