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तित्थोगाली पइन्नय ]
( अथच प्रभाते, गते सूर्ये युगान्तरं क्रमशः । मिथुनानां तेषां पार्श्वे शक्र शानौ आगतो सहसा ]
तदनन्तर प्रभात होने और सूर्य के क्रमशः गगन में बढ़ने पर उन देशों कुलकर मिथुनों के समीप शकेन्द्र और ईशानेन्द्र (वैक्रिय शक्ति से अपने दश दश स्वरूप बनाकर ) उपस्थित हुए । १२० । तेहि विणण तो ते सुविण फलं पुच्छिया सुरवरिदा । बिते उपवईसि, कांजली सुखरो भणिया । १२१ । (तैः विनयेन ततः तौ, स्वप्न फलं पृष्टौ सुरवरेन्द्रौ । ब्रू वाते उपविश्य, कृताञ्जल्यो सुरवरौ भणितौ ।)
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तदनन्तर उन कुलकर दम्पत्तियों ने विनयपूर्वक उन दोनों इन्द्रों से उन चौदह स्वप्नों का फल पूछा। प्रश्न सुनकर दोनों देवेन्द्र उन दम्पतियों को हाथ जोड़कर बैठे और कहने लगे । १२१ । जह एते साइसया. दिट्ठा कल्लाणदंसणा सुमिणा । होहिति तुम्ह पुत्ता, उत्तम विष्णाण मंजुता । १२२ । ( यथां एते सातिशया दृष्टा कल्याण-दर्शनाः स्वप्नाः । भविष्यन्ति युष्माकं पुत्रा, उत्तम विज्ञानसंयुक्ता ।)
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'जिस प्रकार के ये अतिशय सम्पन्न और कल्याण सूचक स्वप्न देखे गये हैं. (इनका फल यह है कि ) आपके यहां उत्तम और विशिष्ट ज्ञान से सम्पन्न पुत्र जन्म ग्रहण करेंगे । १२२ ।”
होहित पुइपाला, दसमुबि खेत्तसु ते महासत्ता । दरिति सिप्पस बाबचरि चैव य कलाओ । १२३ । (भविष्यन्ति पृथ्वीपालाः दशष्यपि क्षेत्र ते महासत्त्वाः । दर्शयिष्यन्ति च शिल्पशतं द्वासप्ततीश्चैव च कला: )
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वे महान् सत्त्वशाली महापुरुष दसों क्षेत्रों में पृथ्वी की पालना करने वाले होंगे । वे सौ प्रकार के शिल्पों और बहत्तर प्रकार की कलाओं की लोगों को शिक्षा देंगे । १२३ ।”