SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ तित्योगाली पइय चौदहवें स्वप्न में मरुदेवी आदि जिन-माताए पके हुए ग्राफ (खस-तिजारा) के फूल के समान, श्रेष्ठ आहुतियों से प्रज्वलित, मन्द-मन्द पवन द्वारा प्रेरित ज्वालाओं वाली प्रदक्षिणासक्त निधूमाग्नि को देखती हैं ।११६। एयं चौदस सुमिणं, ताउ पेच्छंति वीरजणणीओ । मरुदेवी पमुहाओ, कहिंसु नियकुलगराणं तु ।११७। (एतान् चतुर्दश स्वप्नान् , तास्तु प्रेक्षन्ति वीरजनन्यः । मरुदेवी प्रमुखाः, कथयन्ति निजकुलकराणान्तु ।) __ मरुदेवी आदि दशों. ही वीर महापुरुषों की माताएं इन उपर्युक्त चौदह स्वप्नों को देखती हैं और अपने अपने कुलकर को अपने स्वप्न सुनाती हैं ।११७। तो ते कुलगरनाहा, जायाओ भणंति सोहणं वयणं । होहिंति तुम्ह पुत्ता, कित्तीज्जुत्तामहासत्ता ।११८। . (ततः ते कुलकरनाथाः, जायान् भणन्ति शोमन वचनम् । भविष्यन्ति युष्माकं पुत्राः, कीर्तियुक्ताः महासत्त्वाः ।) स्वप्नों को सुनने के पश्चात् वे दशों कूलकर पति अपनीअपनी पत्नियों को इस प्रकार के सुहावने शुभवचन कहते हैं--: तुम महान् यशस्वी और शक्तिशाली पुत्रों को जन्म दोगी।'११८। . ते विय अम्हाहितो, अहिया होहिंति नत्थि संदेहो । अहवावि कुलगराणा वि विसिट्ठतरयंतु जं ठाणं ।११९/ (ते खलु अस्माभ्योऽधिकाः भविष्यन्ति नास्ति सन्देहः । अथवापि कुलकरेभ्योऽपि विशिष्टतरकं तु यत् स्थानम् ।) ___"वे हम से भी बढ़कर होंगे, इसमें कोई सन्देह नहीं है । अथवा वे कुलकरों से भी किसी विशिष्ट विरुद के धारक होंगे, ऐसा इन स्वप्नों से प्रतीत होता है । ११६। ज (अ) त्यो य पहायंमि, गयंमिसूरे जुगंतर कमसो । मिहुणाण ताण पासं, सक्कीसाणागया सहसा ।१२०।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy