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तित्थोगाली पइन्नय ।
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ने बारहवें स्वप्न में प्रासाद देखा । प्रासाद का अर्थ देवभवन तो होता है पर विमान नहीं। तित्थोगाली पइन्नयकार ने बारहवें स्वप्न में नागभवन के देखने का भी उल्लेख किया है। भवनपति देवताओं के
आवास भवन ही कहलाते हैं न कि प्रासाद । ऐसी दशा में प्रस्तुत ग्रन्थ में उल्लिखित 'प्रासाद' कहीं विमान के अर्थ में तो प्रयुक्त नहीं हुआ है-यह विद्वानों के लिये विचार का विषय है। मंदरगुहगंभीरं, पमुइय पक्कीलियं मणभिरामं । नाग-भवणं महतं, पेच्छंति पीवर सिरीयं ।११४। (मंदरगुहा गभीरं, प्रमुदित प्रक्रीडितं मनोऽभिरामम् । नागभवनं महान्तं, प्रक्षन्ति पीवर श्रीकम् ।)
बारहवां दूसरा स्वप्न :-- (अथवा)-मंदराचल की गुफा के समान गहन गम्भीर, प्रमोद बढ़ाने वाला, क्रीडा योग्य, अत्यन्त मनोरम और अक्षय श्रीसम्पन्न महान् नाग भवन को देखती हैं ।११४। सिठिंधणपज्जलियं, बहुयावहं निययभूइसंयुत्तं । पेच्छंति रयणचयं, किरणावलि रंजिय दिसो [द] है ।११५॥ (श्रेष्ठेन्धन प्रज्ज्वलितं, बहुधावहं निजकभूति संयुक्तम् । प्रेक्षन्ति रत्नचयं' , किरणावलिरंजित दिशोदशम् ।)
. तीर्थङ्करों की मरुदेवी आदि दशों माताए १३ वें स्वप्न में घृत, कपूर, अगरु, धूप, चन्दन आदि श्रेष्ठ इधन से प्रज्वलित, अपने ज्वाला-माला, जगमगाहट, ज्योति आदि सभी वास्तविक गुणों से सम्पन्न अग्नि के समान अपनी किरणावलि से दशों दिशाओं को . प्रकाशित करती हुई रत्नराशि को देखती हैं ।११५॥
परिणय कुसुभ सरिसं, आहुइपउरं हुयासणजलियं । तणु पवणेरियजालं, निद्ध म पयक्खिणासत्वं ।११६। (परिणत कुसुभ सदृशं आहुति-प्रवरं हुताशनज्वलितम् । तनु-पवनेरितज्वालं, निर्धूम प्रदक्षिणासक्तम् ।) १ चयन चयः । पिण्डी भवने (अनुयोगद्वार, सटीक) २ अाफू के खिले पुष्प के समान ।