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[ तित्थोगाली पइन्नय
दसवें स्वप्न में हर्षितमना वे दशो तीर्थङ्करों की माताएं स्फटिक रत्न के समान स्वच्छ जल से परिपूर्ण, भांति-भांति के पक्षिसमूहों से सेवित और विकसित पद्मसरोवर को देखती हैं ।१११। उम्भिसहस्सपउरं, नाणाविहमच्छकच्छ भाइण्णं ।' गम्भीरगज्जियरावं, खीरसमुदं तु पेच्छंति ।११२। (उर्मि सहस्र प्रचुरं, नानाविध मत्स्य कच्छभाकीर्णम् । . . गम्भीरगर्जितरवं, क्षीरसमुद्र तु प्रेक्षन्ति ।)
तदनन्तर ग्यारहवें स्वप्न में वे प्रचुर सहस्रो लहरों से शोभायमान, अनेक प्रकार के मत्स्यो एवं कच्छपों से संकुल (भरे)
और गम्भीर गर्जन करते हुए क्षीर समुद्र को देखती हैं । ११२। वज्जमिरीइकवयं, विणिमुयंत समूसियमुदारं । पासायं पेच्छंती पडागमालाउलं रम्मं ।११३। (वज्र-मिरीचिकाचं, विनिमुचन्तं समुच्छितमुदारम् । प्रासादं प्रक्षन्ति, पताकामालाकुल रम्यम् ।)
बारहवें स्वप्न में वे जिनेश्वरों की माताए वज्र की किरणों के कवच को छोड़ते हुए, पताकारों की पंक्तियों से संकुल, गगनचुम्बी, विशाल सुरम्य प्रासाद को देखती हैं ।११३।
स्पष्टीकरण--प्रचलित मान्यता और सत्तरिसय ठाण प्रकरण के अनुसार जिन-तीर्थंकरों के जीव विमानों से च्यवन कर माता के गर्भ में आते हैं । उनकी माताएं बारहवें स्वप्न में विमान देखती हैं। जिन तीर्थकरों के जीव नरक से आते हैं उनकी माताए बारहवें स्वप्न में भवन देखती हैं । यथाः-नरय उट्ठाण इहं, भवणं सग्गच्चुयाण उ विमारणं।
किन्तु तित्थोगाली पइन्नयकार ने बारहवें स्वप्न में तीर्थकरों की माताओं द्वारा प्रासाद अथवा नाग भवन के दर्शन का उल्लेख करते हुए स्पष्ट लिखा है कि भगवान ऋषभदेव का जीव सर्वार्थसिद्ध विमान से च्यवन कर माता के गर्भ में आया उस समय माता मरुदेवी
१ पासाय-प्रासाद-पुः । देवानां राज्ञां च भवने-[भगवती, श. ५, उ. ३]