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________________ २२ ] अद्ध मरहम ज्झिल -तिभागे गंगसिंधुमज्झमि । एत्थ बहुमज्झ देसे, उप्पन्ना कुलगरा सच | ७१ | (अर्ध भरत मध्यस्थ, त्रिभागे गंगा-सिन्धु-मध्ये | 'अत्र बहुमध्यदेशे, उत्पन्नाः कुलकराः सप्त । । ) भरतार्द्ध के मध्यस्थित विभाग के गंगा और सिन्धु के बीच के प्रदेश के ठीक मध्यस्थ भू-भाग में ( क्रमशः) सात कुलकर उत्पन्न हुए ७१। [ तित्थोगाली पइन्नथ पुव्वभवम नामप्यमाण संघयणमेवठाणं । विणिच्छउभागा, भवणोवाओ य नीती य ॥ ७२ ॥ ( पूर्व भव - जन्म नाम - प्रमाण, संहननमेवं संस्थानम् । विनिश्चितायुभागः, भवनोत्पादश्च नीतिश्च ||) मैं (उनके) पूर्व भव; जन्म नाम प्रमाण, संहनन, संस्थान, निश्चित प्रायु-भाग, भवन निर्माण और नोतियों का कथन करूंगा।७२। - अरविदेहे दो वणिय-वयंसा माइ उज्जुए चैव । कालगया इह भरहे, हत्थी मणुओ य आयाय । ७३ । [अपरविदेहे द्वौ वणिक् वयस्यौ मायावी ऋजुकश्चैव । कालगता इह भरते, हस्ती मनुजश्च आयातः ।। ] अपर विदेह क्षेत्र में दो वणिक मित्र थे । उनमें से एक वरिएक् मायावी और दूसरा सरल प्रकृति का था। मर कर वे दोनों यहां भरत क्षेत्र में उत्पन्न हुए। मायावी वणिक् का जीव हाथी के रूप में और ऋजु प्रकृति वणिक् का जीव मनुष्य के रूप में ।७३। द सिणेहकरणं, गयमारूहणं च नामनिष्कत्ती । परिहाणिम्मिह कलहो, सामत्थण - विणवणं हत्थी |७४ | [दृष्ट्वा स्नेहकरणं, गजनारोहणं च नामनिष्पत्तिः । परिहानौ इह कलहः सामर्थन - विज्ञपनं हस्ती ।।] '
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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