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तित्थोगाली पइन्नय ]
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मनुष्य (विमलवाहन नामक प्रथम कुलकर) और हाथी ने एक दिन परस्पर एक दूसरे को देखा । पूर्वजन्म की मैत्री के कारण तत्काल उन दोनों का परस्पर स्नेह हो गया। हाथी उस पुरुष के पास आकर बैठा और वह पुरुष उस पर आरूढ़ हो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने लगा । सुन्दर श्वेत गजराज पर श्रारूढ़ उस पुरुष को देखकर यौगलिकों ने उसका नाम विमलवाहन रक्खा । काल प्रभाव से कल्पवृक्षों एवं उनके द्वारा प्राप्त होने वाली भोग-सामग्री के परिक्षीण होने पर यौगलिकों में कल्पवृक्षों के स्वामित्व के प्रश्न को लेकर कलह होने लगे । कलह के मूल कारण पर यौगलिकों ने परस्पर विचार-विमर्श किया और विमलवाहन को अपना मुखिया मानकर उसके समक्ष सामूहिक रूप से निवेदन किया कि वह उनके आपसी कलह को दूर करें । विमलवाहन ने उस श्वेत हस्ती पर आरूढ़ हो सर्वत्र घूम घूम कर यौगलिकों में कल्पवृक्षों का समुचित बंटवारा किया |७४ |
उत्थमभिचंदे ।
पढमित्थ विमलवाहण, चक्खु जस ततो अ पसेणइए, मरूदये चैव नाभी य । ७५ । [ प्रथमोऽत्र विमलवाहनः, चतुम- यशोमान् चतुर्थ अभिचंद्रः । ततश्च प्रसेनजितकः मरुदेवश्चैव नाभिश्व | ७५ |
उन सात कुलकरों के नाम इस प्रकार हैं :- विमलवाहन ( १ ); चक्षुष्मान (२), यशोमानं (३), अभिचन्द्र (४), प्रसेनजित् (५), मरुदेव (६) और नाभि (७) ।७५।
नवगुसाईं पढमो, अट्ठ य सच्छूढ सत्तमाई च । बच्चेव अटूटा, पंचसया पणवीसा य | ७६ दारं । ( नव धनुशतानि प्रथमः, अष्टौ च सप्तार्थ सप्तमानं च । षडूचैव अर्धपष्ठं, पंचशता-पंच विंशतिश्च । ७६द्वारं । )
प्रथम कुलकर के शरीर की ऊंचाई ६०० धनुष, द्वितीय की धनुष, तृतीय की ७५०, चतुर्थ की ७००, पंचम की ६००, छटे की ५५० और सातवें कुलकर के शरीर की लम्बाई ५२५ धनुष
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थी | ७६ |