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________________ २० ] [ तित्योगाली पइन्नय जो अणुभावो सुसमाए, सो सुसमदूसमाए वि। दो दोय पलिय गाउय, परिहीणं आउ उच्चत्त ।६।। (योऽनुभावः सुषमायां, सः सुषमदुःषमायामपि । द्वौ द्वौ च पल्य गव्यूते च, परिहीनं आयु उच्चता ।) जो जो अनुभाव अथवा परिस्थितियां सुषमा नामक आरक में होती हैं वे ही सुषम-दुःषम नामक प्रारक में भी होती हैं । मोटे तौर पर अन्तर यह है कि (प्रथम प्रारक के मनुष्यों की अपेक्षा) इन तृतीय आरक के मनुष्यों की आयु दो दो पल्य तथा ऊंचाई दो दो कोस कम रह जाती है ।६४। पलिओवमलोहद्धं, परमाउं होई तेसि मणुयाणं । तइयाए उक्कोसं, अवसाणे पुचकोडी उ ।६५। (पल्योपमलोहार्दा, परमायुः भवति तेषां मनुजानाम् । तृतीयायां उत्कर्ष, अवसाने पूर्वकोटी तु ॥) तीसरे बारे में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु लोहार्द्ध पल्योपम और तृतीय पारक के अवसान काल में एक करोड़ पूर्व रह जाती है ।६५॥ ओसहि-बल-वीरिय परक्कमा य, संघयण-पज्जवगुणा य । अणुसमयं हायंती, उवमोगसुहाणि य नराणं ।६६। [औषधिवल-बीर्यपराक्रमाश्च, संहनन पर्यव [पर्याय] गुणाश्च । मनुसमयं हीयन्ते, उपभोग-सुखानि च नराणाम् ।।] औषधि (वनस्पति), बल, वीर्य, पराक्रम, संहनन, पर्याय गुण और मनुष्यों के उपभोग तथा सुख प्रति समय (काल का सबसे सूक्ष्मतम अविभाज्य भाग) निरन्तर हीन अर्थात् कम होते जाते हैं।६६। मूलफल-कन्द-निम्मल, नाणाविह इटु-गंध-रस-भोगा । बवगयरोगायंका, सुरूव सुर-दुन्दुमिणिया ।६७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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