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तित्थोगाली पइन्नय ]
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वे मण्डपाकार पक्ष नामक कल्पवृक्ष जाली झरोखों से सुशोभित अनुपम कलाकृतिपूर्ण अति सुन्दर सुविशाल प्रासादों के समान होते हैं। वे मणिरत्नमय सुन्दर भित्तिचित्रों से अलंकृत और रत्ननिर्मित गगनचुम्बी शिखरों से शोभायमान होते हैं ।६०। दो गाउय उच्छेहा, पुरिसा ताय होंति महिलाओ। दोन्नि पलिओवमाइं, परमाउतेसि बोधव्वं ६१। (द्व', गव्यूते उत्सेधाः, पुरुषाः तथा च भवंति महिलाः । द्वे' पल्योपमे, परमागुः तेषां बोद्धव्याः ।।) ___सुषमा नामक उस द्वितीय प्रारक के नर तथा नारी गण दो गाऊ (कोस) की ऊंचाई और दो पल्योपम की उत्कृष्ट आयु वाले होते हैं, ऐसा समझना चाहिए :६१।। एसा उवभोगविही, ससमाए हवइ पुरिस-महिलाणं । एक्केक्कपलिय गाउय, परिहीणं आउ उच्चत्तं ।६२। (एषा उपभोगविधिः सुषमायां भवति पुरुष-महिलानाम् । एकैक पल्यं गव्यूतिश्च परिहीनं आयु उच्चत्वं ।।) ___ सुषमा नामक आरक में पुरुषों तथा महिलाओं की यह उपभोगविधि है । सुषम-सुषमा काल के मनुष्यों की अपेक्षा इस काल के मनुष्यों की आयु एक एक पल्य और ऊंचाई एक एक कोस घट जाती है अर्थात् दो पल्य की आयु एव दो कोस की ऊचाई रह जाती है ।६२। हेमवय हिरण्णवया, दस खेत्ता हवंति भरत खेत्तसमा । सूसमसम-कालो, आसी तइए उ अरगंमि ।६३। (हैमवतहिरण्यावर्ताः दश क्षेत्राः भवंति भरतक्षेत्रसमाः । सुषमदुषमकालः, आसीत् तृतीये तु आरके I)
अवसर्पिणी के तीसरे आरक में सुषम-दुषमा नामक काल या। उसमें हैमवत और हिरण्यावर्त आदि दशों क्षेत्र भरत-क्षेत्र के समान (अवस्था वाले) होते हैं ।६३।