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________________ [ तित्थोगाली पइन्नय १८ ] वत्थाई मणिगणेसु ं, दीवसिहे पुण करेंति उज्जोयं । तुडियंगे यगेज्झं भिंगेसु य भायण - विहीउ । ५७ । वस्त्राणि अाग्नेयेषु, दीपशिखाः पुनः कुर्वन्ति उद्योतम् । त्रुटितांगेषु च गेयं भृगेषु च भाजनविधयः ।] अनग्न नायक कल्पवृक्षों से वस्त्र, दीपशिखा कल्प वृक्षों से प्रकाश, त्रुटितांगों से वाद्य संगीत, भृंगों से विविध पात्र । ५७ । कोवीणे आभरणं, उरू सहभोग तह य वण्णगविहीउ । आमोएसु य मज्जं मल्लविहीओ पमोएस | ५८ । [कोपीने आभरणं, उरौ सुखभोगा तथा च वर्णक-विधयः । आमोदेषु च मद्य, माल्यविधयः प्रमोदेषु |] कोपीना नामक कल्पवृक्षों से आभरण, उरुसहजा नामक कल्पतरुनों से प्रसाधन सामग्री आमोदा नामक कल्पवृक्षों से सुख सागर में मग्न रखने वाला पेय, प्रमोदा नामक सुरतरुओं से हार, माला आदि आभूषण । ५८. चिचरसेसु य इड्डा, नाणाविभक्खभोयणविहीओ | पच्छा मंडव सरिसा बोधव्वा कप्परुक्खा य । ५९ । [चित्ररसेसु च इष्टाः नानाविधभक्ष्य भोजनविधयः । पक्षाः मण्डप सदृशाः, बोधव्याः कल्पवृक्षाश्च ।] चित्ररसा नामक कल्पतरुत्रों से यथेष्ट नानाविध भोज्योपभोज्य सामग्री मिलती है। पक्ष नामक कल्पवृक्ष मण्डप के समान होते हैं । ये दश प्रकार के कल्पवृक्ष समझने चाहिए । ५६ । पासाय जालहंमिय, अणुवमंगन्भजालविहिपरया । मणिरयण भित्तिचित्ता, रयणुड ढसिराय । ६० । ( प्रासादजालहर्मित अनुपम गर्भ - जाल विधिपरकाः । मणिरत्न- भित्तिचित्राः, रत्नोद्धर्व शिराश्च ।।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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