________________
तित्थोगाली पइन्न य )
[१५
मत्तंगयाय भिंगा, तुडियंगा दिव्वजोइचित्तंगा । चित्तरसा मणियंगा, गेहागारा अणियणा य ।४६। (मत्तंगकाश्च भृगाः, त्रुटितांगा दीप-ज्योति-चित्रांगाः । चित्ररसाः मण्यंगा गहकारा अनग्नाश्च ।)
उन दश प्रकार के कल्पवृक्षों के नाम निम्नलिखित हैं:-- मत्त ग (१) भृग (२), त्रुटितांग (६), दीप (४), ज्योति (५) चित्रांग (६). चित्ररस (७). मण्यग (८), गेहकर (8) और अनग्न (१०) ४६ मत्तंगएसु मज्जं सुहवेज्ज भायणाई भिंगेम । तुडियंगेसु य संगय, तुडियाई तह पगाराई।४७ (मत्तंगकेषु मद्य, सुख-वेद्यं भाजनानि भगेषु । त्रुटितांगेषु च संगत-त्रुटितानि तथा प्रकाराणि ।) __ मत्तग नामक कल्पवृक्षों से उन मानवों को अहर्निश सुखानुभूति में मग्न रखने वाला पेय, भृग नामक कल्पवृक्षों से भाजनपात्रादि, त्रुटितांग नामक वृक्षों से तुरहो आदि विविध प्रकार के वाद्य-यन्त्र ।४७। दीवसिहा जोइसिनामगा य एते करिति उज्जोयं । चित्तंगेसु य मल्लं, चित्तरसा भोयणट्ठाए ४८) (दीपशिखा ज्योतिर्नामकाश्च. एते कुर्वन्ति उद्योतम् । चित्रांगेषु च माल्यं, चित्ररसा भोजनार्थाय ।)
दीपशिखा एवं ज्योति नामक वृक्षों से यथेप्सित सुखद प्रकाश, चित्रांग नामक कल्पद्र मों से माला, हार प्रादि मनोज्ञ प्रसाधन और चित्ररस नामक कल्पवृक्षों से भोजन सामग्री ।४८॥ मणिअंगेसु य भूसणवराई, भवणाई भवणरूवेसु । आइण्णेसु य वणियं, वत्थाई बहुप्पगाराई ४९।। (मण्यंगेषु च भूषणवराणि, भवनानि भवनरूपेषु । अनग्नेषु च वर्णितं, वस्त्राणि बहुप्रकाराणि ।)