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[तित्थोगाली पइन्नय
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(असि-मसि - कृषि - वाणिज्यं, व्यवहारः नास्ति राजधर्मो वा । तेषां मिथुनानां तदा, रोषः पोषः अपदेशो वा ।)
उस समय के उन यौगलिक मानवों में असि (तलवार), मसि ( लेखन), कृषि, वाणिज्य, पारस्परिक आदान-प्रदान, शासक-शासित, आक्रोश, पोषण और परस्पर उपकार - अपकार आदि का व्यवहार नहीं होता । ३५॥
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पउमुप्पलनीसासा, विरूवितरण निब्भया निरूवलेवा | वंग लिपलियरहिया, एतेसु नरा तया सुहिया |३३| (पद्मोत्पलनिश्वासा, विरूपितनु निर्भया निरुपलेपाः | बँक - वलि - पलितरहिता, एतेषु नरा तदा सुखिन: । )
इन क्षेत्रों में उस समय के मानव कमल पुष्प को भीनी मादक सुगन्ध के समान श्वासोच्छवास वाले, विशिष्ट सुन्दर शरीरधारी, पूर्ण निर्भय, छल-छद्म द्वेषादि से निर्लिप्त, बांक-टेढ़ श्वेतकेश आदि शारीरिक दोषों से रहित एवं सर्वथा सुखी होते हैं । ३६ ।
गंभीरनिद्धघोसा, साक्कोसा अमच्छर सहावा । अनुलोमवाउवेगा, अपरिमिय-परककमपलोया । ३७ (गंभीर निद्घघोषाः, सानुक्रोशा अमत्सरस्वभावाः । अनुलोम वायुवेगाः, अपरिमितपराक्रमप्रलोकाः ।)
उस समय मानव-मिथुन घनरवगम्भीर गुंजायमान स्वर, मात्सर्यमुक्त स्वभाव, वायु के समान अप्रतिहत यथेच्छ वेग और अपरिमित पराक्रम एवं तेज सम्पन्न होते हैं |३७|
कस्सह अणभियोगा, अहर्मिंदा वज्जरिसभसंघयणा । माणुम्मारणुववेया, पेसलच्छसव्वंगसंघयणा | ३८ | ( कस्यापि अनभियोगाः, अहमिन्द्रा वज्रऋषभ संहननाः । मानोन्मानोपपेताः पेशलाच्छसर्वांगसंहननाः । )